Monday, July 3, 2017

मिर्गी, अस्थमा, दमा पेट दर्द मानसिक समस्या

मिर्गी, अस्थमा, दमा पेट दर्द मानसिक समस्या

मिर्गी के दौरे (Epilepsy) :

मिर्गी के दौरे पड़ने के कई कारण हो सकते है जैसे जेनेटिक, सिर में चोट लगना, इन्फेक्शन, ब्रेन ट्यूमर, किसी भी बात का सदमा लग जाना, मानसिक तनाव आदि। अगर पुरे विश्व की बात करे तो इसके मरीजों की संख्या करोडो में है| लेकिन आजकल इसका इलाज संभव है। मिर्गी एक नाडीमंडल संबंधित रोग है जिसमें मस्तिष्क की विद्युतीय प्रक्रिया में व्यवधान पडने से शरीर के अंगों में आक्षेप आने लगते हैं। दौरा पडने के दौरान ज्यादातर रोगी बेहोंश हो जाते हैं और आंखों की पुतलियां उलट जाती हैं। रोगी चेतना विहीन हो जाता है और शरीर के अंगों में झटके आने शुरू हो जाते हैं। ये बीमारी मस्तिष्क के विकार के कारण होती है। यानि मिर्गी का दौरा पड़ने पर शरीर अकड़ जाता है जिसको अंग्रेजी में सीज़र डिसॉर्डर ( seizure disorder) भी कहते हैं।मुंह में झाग आना मिर्गी का प्रमुख लक्षण है।
मिर्गी दो प्रकार की होती है। पहली तो आंशिक मिर्गी जो दिमाग के एक भाग को प्रभावित करती है। और दूसरी व्यापक मिर्गी, जो मस्तिक्ष के दोनों भागो को प्रभावित करती है। यदि किसी की बेहोशी दो-तीन मिनट से ज्यादा है, तो यह जानलेवा भी हो सकती है। उसे तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए । कुछ लोग मिर्गी आने पर रोगी को जूता, प्याज आदि सुंघाते हैं, इसका मिर्गी के इलाज से कोई संबंध नहीं है।
यदि किसी बच्चे को मिर्गी की शिकायत है, तो कोई मानसिक कमी भी इसका कारण हो सकती है। आमतौर पर मिर्गी आने पर रोगी बेहोश हो जाता है। यह बेहोशी चंद सेकेंड, मिनट या घंटों तक हो सकती है। दौरा समाप्त होते ही मरीज सामान्य हो जाता है। वैसे तो इस बीमारी का पता 3000 साल पहले लग चुका था लेकिन इस बीमारी को लेकर लोगों के मन में जो गलत धारणाएं हैं उसके कारण इसका सही तरह से इलाज की बात करने की बात लोग सोचते बहुत कम हैं। ग्रामीण इलाकों में लोग इस बीमारी को भूत-प्रेत का साया समझते हैं और उसका सही तरह से इलाज करवाने के जगह पर झाड़-फूंक करवाने ले जाते हैं। यहां कि तक लोग मिर्गी के मरीज़ को पागल ही समझ लेते हैं। जिन महिलाओं को मिर्गी का रोग होता है उनकी शादी होनी मुश्किल होती है क्योंकि लोग मानते हैं कि मिर्गी के मरीज़ को बच्चा नहीं हो सकता है या बच्चे भी माँ के कारण इस बीमारी का शिकार हो जाते हैं। मिर्गी का मरीज़ पागल नहीं होता है वह आम लोगों के तरह ही होता है। उसकी शारीरिक प्रक्रिया भी सामान्य होती है। मिर्गी का मरीज़ शादी करने के योग्य होता/होती है और वे बच्चे को जन्म देने की भी पूर्ण क्षमता रखते हैं सिर्फ उनको डॉक्टर के तत्वाधान में रहना पड़ता है।
आज हम आपको इस बीमारी से बचने के लिए एक ऐसा उपाय  बता रहे है, जिससे मिर्गी सिर्फ 1 दिन में खत्म हो जायेगी, यह उपाय लकवा (Paralysis) के मरीजों के लिए भी रामबाण है, इस उपाय को स्वास्थ्य व्यक्ति कर लेता है तो जीवन में कभी ये दोनों रोग नही होंगे।

➡ मिर्गी के लक्षण :

वैसे तो मिर्गी का दौरा पड़ने पर बहुत तरह के शारीरिक लक्षण नजर आते हैं। मिर्गी का दौरा पड़ने पर मरीज़ के अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं। लेकिन कुछ आम लक्षण मिर्गी के दौरा पड़ने पर नजर आते हैं, वे हैं-
1. चक्कर खाकर जमीन पर गिर जाना।

2. शरीर में अचानक कमजोरी आजाना।
3. चिड़चिड़ाहट महसूस होना|
4. आँखे ऊपर हो जाना और चेहरे का नीला पड़ जाना।
5. अचानक हाथ, पैर और चेहरे के मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न होने लगता है।
6. सर और आंख की पुतलियों में लगातार मूवमेंट होने लगता है।
7. मरीज़ या तो पूर्ण रूप से बेहोश हो जाता है या आंशिक रूप से मुर्छित होता है।
8. पेट में गड़बड़ी।
9. जीभ काटने और असंयम की प्रवृत्ति।
10. मिर्गी के दौरे के बाद मरीज़ उलझन में होता है, नींद से बोझिल और थका हुआ महसूस करता है।

➡ मिर्गी के मुख्य कारण :

मस्तिष्क का काम न्यूरॉन्स के सही तरह से सिग्नल देने पर निर्भर करता है। लेकिन जब इस काम में बाधा उत्पन्न होने लगता है तब मस्तिष्क के काम में प्रॉबल्म आना शुरू हो जाता है। इसके कारण मिर्गी के मरीज़ को जब दौरा पड़ता है तब उसका शरीर अकड़ जाता है, बेहोश हो जाते हैं, कुछ वक्त के लिए शरीर के विशेष अंग निष्क्रिय हो जाता है आदि। वैसे तो इसके रोग के होने के सही कारण के बारे में बताना कुछ मुश्किल है। कुछ कारणों के मस्तिष्क पर पड़ सकता है असर, जैसे-
1. तम्बाकू, शराब या अन्य नशीली चीजों का सेवन करने पर|
2. बिजली का झटका लगना या ज़रूरत से ज़्यादा तनाव।
3. ब्रेन ट्यूम, ब्रेन स्ट्रोक या जेनेटिक कंडिशन
4. जन्म के समय मस्तिष्क में पूर्ण रूप से ऑक्सिजन का आवागमन न होने पर|
5. नींद पूरी न होना और शारीरिक क्षमता से अधिक मानसिक व शारीरिक काम करना।
6. जन्म के समय मस्तिष्क में पूर्ण रूप से ऑक्सिजन का आवागमन न होने पर।
7. दिमागी बुखार (meningitis) और इन्सेफेलाइटिस (encephalitis) के इंफेक्शन से मस्तिष्क पर पड़ता है प्रभाव।
8. कार्बन मोनोऑक्साइड के विषाक्तता के कारण भी मिर्गी का रोग होता है।
9. ड्रग एडिक्शन और एन्टीडिप्रेसेन्ट के ज्यादा इस्तेमाल होने पर भी मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ सकता है।
10. न्यूरोलॉजिकल डिज़ीज जैसे अल्जाइमर रोग।

अरीठे के चूर्ण को सूँघने मात्र से मिट जाते है ये 4 बड़े रोग मिर्गी, अस्थमा, पेट दर्द और मानसिक समस्या

अरीठे के वृक्ष भारतवर्ष में अधिकतर सभी जगह होते हैं। यह वृक्ष बहुत बड़ा होता है, इसके पत्ते गूलर से भी बड़े होते हैं। अरीठे के वृक्ष को साधारण समझना केवल भ्रम है। अरीठे को पीसकर सिर में डाल लेने से साबुन की आवश्यकता ही नहीं रहती है।
अरीठा के फायदे:

मिर्गी में :

अरीठे को पीस-छानकर रख लें, इसे रोजाना सूंघने से मिरगी का रोग खत्म हो जाता है।
अरीठे की बीज रोगी के मुंह में रख देने से मिरगी के कारण होने वाली बेहोशी दूर हो जाती है।
अरीठे के चूर्ण को कपड़े से छानकर मिरगी के रोगी को सुंघाने से मिरगी रोग खत्म हो जाता है।
नींबू के रस में अरीठे को घिसकर उसको नाक में टपकाने से मिर्गी के दौरे समाप्त हो जाते हैं।
पेट में दर्द :
अरीठे और करंजवे (कटुकरंजा) के बीज का चूर्ण बराबर-बराबर लेकर उसमें आधा हिस्सा हींग और संचल डालकर अदरक के रस में चने के बराबर गोली बनाएं और दिन में 3 बार 2-2 गोली गर्म पानी के साथ दें। 1 सप्ताह में पेट का तेज से तेज दर्द भी ठीक होता है।
अरीठे की छाल और समुद्रफेन को खाने से पेट की बीमारियां मिट जाती हैं।
दमा या अस्थमा :
अरीठे की छाल के बारीक चूर्ण को सेवन करने से कफ पतला होकर तुरन्त निकल जाता है।
अरीठे का पानी पिलाना चाहिए और इसका फेन पेट पर मलना चाहिए।
अरीठा की मींगी या आम की गुठली की गिरी को खाने से श्वास रोग दूर हो जाता है।
मस्तिसिक से जुडी समस्या :
लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अरीठे की गिरी सुंघाने से तेज सिर का दर्द भी ठीक हो जाता है।
अरीठे के पत्तों के रस में कालीमिर्च को घिसकर नाक में डालना चाहिए। इससे सिर में दर्द, आधे सिर में दर्द यानी माइग्रेन आदि सभी प्रकार के मस्तिष्क रोग नष्ट हो जाते हैं।

मिर्गी हो या फिर हो दमा ये पौधा इनका अद्भुत उपाय है, एक बार आजमाने में ही मिल जाता है आराम

नागरमोथा पूरे भारत में नमी तथा जलीय क्षेत्रों में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसके झाड़ीनुमा पौधे समुद्र तल से 6 हजार फुट की ऊंचाई तक पाये जाते हैं।
 नागरमोथा नदी और नालों के किनारे की नमी वाली भूमि में पैदा होते हैं। पुष्प (फूल) जुलाई में तथा फल दिसम्बर के महीने में आते हैं।
दवा बनाने की विधि:

दमा, खांसी : नागरमोथा, सोंठ और बड़ी हरड़ के चूर्ण में गुड़ मिलाकर खाने से दमा और खांसी नष्ट हो जाती है।
सोंठ, हरड़ और नागरमोथा को पीसकर गुड़ में मिलाकर 2-2 ग्राम की मात्रा में गोलियां बनाकर रख लें। इन्हें चूसने से सभी प्रकार की खांसी और दमा नष्ट हो जाती है।
मिर्गी : नागरमोथा को उत्तर दिशा की तरफ से पुण्य नक्षत्र में अच्छे दिन में उखाड़कर एक रंग की गाय (जिस गाय के बछड़े न मरते हो) के दूध से पिलाने से मिर्गी में लाभ पहुंचता है

मिर्गी के 20 रामबाण उपाय :

पेठा मिर्गी की सर्वश्रेष्ठ घरेलू चिकित्सा में से एक है। इसमें पाये जाने वाले पौषक तत्वों से मस्तिष्क के नाडी-रसायन संतुलित हो जाते हैं जिससे मिर्गी रोग की गंभीरता में गिरावट आ जाती है। पेठे की सब्जी बनाई जाती है लेकिन इसका जूस नियमित पीने से ज्यादा लाभ मिलता है। स्वाद सुधारने के लिये रस में शकर और मुलहटी का पावडर भी मिलाया जा सकता है।
१०० मिलि दूध में इतना ही पानी मिलाकर उबालें दूध में लहसुन की ४ कुली चाकू से बारीक काटक्रर डालें ।यह मिश्रण रात को सोते वक्त पीयें। कुछ ही रोज में फ़ायदा नजर आने लगेगा।
गाय के दूध से बनाया हुआ मक्खन मिर्गी में फ़ायदा पहुंचाने वाला उपाय है। दस ग्राम नित्य खाएं।
होम्योपैथी की औषधियां मिर्गी में हितकारी सिद्ध हुई हैं।कुछ होम्योपैथिक औषधियां है–
क्युप्रम, आर्टीमेसिया, साईलीशिया, एब्सिन्थियम, हायोसायमस, एगेरिकस, स्ट्रामोनियम, कास्टिकम, साईक्युटा विरोसा, ईथुजा| इन दवाओं का लक्षणों के मुताबिक उपयोग करने से मिर्गी से मुक्ति पाई जा सकती है।
तुलसी की पत्तियों के साथ कपूर सुंघाने से मिर्गी के रोगी को होश आ जाता है।
राई पीसकर चूर्ण बना लें। जब रोगी को दौरा पड़े तो सुंघा दें इससे रोगी की बेहोशी दूर हो जायगी।
मिर्गी के रोगी के लिए शहतूत का रस लाभदायक होता है। सेब का जूस भी मिर्गी के रोगी को लाभ पहुंचता है।
मिर्गी के रोगी के पैरों तलवों में आक की आठ-दस बूंदे रोजाना शाम के समय मलें। ऐसा 2 महीनों तक रोजाना करें। इससे काफी लाभ मिलेगा।
तुलसी के पत्तों को पीसकर शरीर पर मलने से मिरगी के रोगी को लाभ होता है।
तुलसी के पत्तों के रस में जरा सा सेंधा नमक मिलाकर 1 -1 बूंद नाक में टपकाने से मिरगी के रोगी को लाभ होता है।
मिरगी के रोगी को ज़रा सी हींग को निम्बू के साथ चूसने से लाभ होता है।
बादाम, बड़ी इलायची, अमरूद और अनार के 17 पत्ते सब को कूटकर दो गिलास पानी में उबाले जब पानी आधा रह जाये तो नमक मिलाकर पिला दें। इस तरह दिन में दो बार पिलायें कुछ ही दिनों में मिरगी रोग समाप्त हो जाता है।
अंगूर का रस मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत उपादेय उपचार माना गया है। आधा किलो अंगूर का रस निकालकर प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।
एप्सम साल्ट (मेग्नेशियम सल्फ़ेट) मिश्रित पानी से मिर्गी रोगी स्नान करे। इस उपाय से दौरों में कमी आ जाती है और दौरे भी ज्यादा भयंकर किस्म के नहीं आते है।
मिट्टी को पानी में गीली करके रोगी के पूरे शरीर पर प्रयुक्त करना अत्यंत लाभकारी उपचार है। एक घंटे बाद नहालें। इससे दौरों में कमी होकर रोगी स्वस्थ अनुभव करेगा।
विटामिन ब६ (पायरीडाक्सीन) का प्रयोग भी मिर्गी रोग में परम हितकारी माना गया है। यह विटामिन गाजर,मूम्फ़ली,चावल,हरी पतीदार सब्जियां और दालों में अच्छी मात्रा में पाया जाता है। १५०-२०० मिलिग्राम विटामिन ब६ लेते रहना अत्यंत हितकारी है।
मानसिक तनाव और शारिरिक अति श्रम रोगी के लिये नुकसान देह है। इनसे बचना जरूरी है।
मिर्गी रोगी को २५० ग्राम बकरी के दूध में ५० ग्राम मेंहदी के पत्तों का रस मिलाकर नित्य प्रात: दो सप्ताह तक पीने से दौरे बंद हो जाते हैं। जरूर आजमाएं।
रोजाना तुलसी के २० पत्ते चबाकर खाने से रोग की गंभीरता में गिरावट देखी जाती है।

No comments:

Post a Comment