Sunday, March 26, 2017

औषधि सतावरी(Asparagus) चमत्कार

औषधि सतावरी(Asparagus) चमत्कार 

सतावरी

सतावरी एक चमत्कारीक औषधि है जिसका भारत में हजारों वर्षो से आयुर्वेदिक चिकित्सा में प्रयोग किया जाता रहा है। सतावरी एक प्राकृतिक बेल है जो औषधीय प्रयोग के साथ साथ हर घर, बगीचे में

सुन्दरता के लिए और बंजड पड़े जंगल में भी पाई जाती है,


सतावरी की जड़ें पत्ते व नई कोपले सब हमारे लिए बहुत उपयोगी होती हैं।लेकिन जड़ का महत्व इन सब से अधिक है। अधिकतर जड़ों को ही औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता हैं। सतावरी का

स्वाद फीका होता है। नई निकली कोपलो से स्वादिस्ट सब्जी बनाई जाती है। सतावरी के फल मटर जैसे गोल लाल रंग के होते हैं।


इस की जड़े लम्बी गोल, उंगली की तरह मोटी मटमैले रंग की होती हैं। सतावरी शीतल व स्निग्ध होती है। शारीरिक ताकत के लिए, कुशाग्र बुद्धि के लिए, स्मरण शक्ति व एकाग्रता बढ़ाने के लिए,

पेट की जलन और आंखों के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। स्त्री के स्तनों में दूध की वृद्धि के लिए स्त्री प्रजनन तंत्र की मजबूती के लिए यह एक बेहतर टानिक है।

सतावरी वीर्यवर्धक, बलवर्धक, ठंडा, दूध को बढ़ाने वाली, खून को साफ करने वाली, तथा सूजन आदि को दूर करता है।यह दस्त तथा वातपित्त, गर्भ के विकार श्वेत प्रदर प्रदर रोग नपुंसकता स्वप्नदोष

मूत्राघात मूत्रविकार दस्त बुखार मिर्गी अम्लपित्त विषनाशक बवासीर खूनी दस्त हिस्टीरिया श्वास मूर्छा अनिंद्रा सिर का दर्द सूखी खांसी पेट-दर्द ,पक्षाघात सर-दर्द, गठिया, घुटनो का दर्द ,पैर के तलवों

में जलन, गर्दन अकड़ना, साइटिका, हाथों में दर्द ,पेशाब संबन्धी रोग, आंतरिक चोट के अलावा शुक्र-वर्धन ,यौन -शक्ति बढ़ाने, महिलाओं के बाँझपन के इलाज के लिए किया जाता है आयुर्वेदिक दवाओं

सतावरी धृत, नारी वटी नारायण तेल, विष्णु तेल, सतावरयादी चुर्णू, शत मूल्यादि लौह आदि सतावरी से ही बनती हैं।

एक व्यक्ति द्वारा सतावरी की जड का रस 10 से 20 मिलीलीटर इसकी जड का चूर्ण 3 से 6 ग्राम और जड़ का काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर तक की मात्रा में लिया जाना उपयुक्त होता है।

5 काली मिर्चों को पीस ले और दो चम्मच सतावरी चूर्ण के साथ मिला ले इसे दो गिलास पानी में उबाल ले इसे छान कर दिन में दो बार ले ने से जुखाम ठीक हो जाता है।

सामान मात्रा में सतावरी और अड़ूसे के पत्ते और मिश्री को पानी में उबालकर दिन में 3 बार पीने से सूखी खांसी ठीक हो जाती है।

सतावरी का काढ़ा बनाए इसमें 1 ग्राम पीपल का चूर्ण मिलाए रोगी को दिन में 2-3 बार पिलाये इस से कफ साफ़ होगा और खांसी भी ठीक हो जाएगी।

10 ग्राम सतावरी पिसी हुई को पांच काली मिर्च के साथ मिलाकर पानी में घोट कर सुबह-शाम पिया जायें तो जुकाम ठीक हो जाता है।

सतावरी की ताजी जड़ का रस और बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर उबाल ले ओर इस तेल से सिर पर मालिश करने से सिर का दर्द और आधे सिर का दर्द खत्म हो जाता है।

एक गिलास दूध में 25 ग्राम सतावरी चूर्ण और अदरक का रस मिलाकर उबाले इसे छान कर रोगी को दिन में 2 बार देने से आंखों के सभी रोग ठीक हो जाते हैं।

सतावरी की नए कोपल की सब्जी देसी घी में बनाकर खाने से रतौंधी (रात का अंधापन) समाप्त होता है।

गीली सतावरी को दूध के साथ पीसकर व छानकर दिन में 3-4 बार पीलाने से खूनी दस्त बंद हो जाते हैं।

सतावरी की ताजा जड़ का रस शहद के साथ मिलाकर दिन 2 बार लेने से एसिडिटी का रोग दूर हो जाता है।

गठिया रोग के लिए हर रोज घुटनों पर सतावरी के तेल की मालिश करने से घुटनों का दर्द ठीक होता है।

सतावरी की खीर में घी मिलाकर खाने से अनिंद्रा की समस्या दूर होती है ।

2 चम्मच सतावरी की जड़ का रस 1 कप दूध के साथ सुबह-शाम सेवन से कुछ महीनो मे ही मिर्गी के रोग मे सुधार आता है।

सतावरी के पत्तों का चूर्ण बनाकर दुगने घी में पकाकर घावों पर लगाने से पुराना घाव भी ठीक हो जाता है।

2 -2 चम्मच सतावरी और गिलोय के रस में शक्कर मिलाकर खाने से वात-ज्वर खत्म हो जाता है।

या सतावरी और गिलोय के 50 से 60 ग्राम काढ़े में शहद मिलाकर पीने से भी ज्वर खत्म हो जाता है।

धातु वृद्धी के लिए समान मात्रा में सतावरी, अश्वगंधा ,कौंच के बीज, गोखरू और आंवला मिलकर चूर्ण बना लें।एक छोटी चम्मच सुबह-शाम गाय के दूध या पानी के साथ ले। और 10 ग्राम सतावरी

चूर्ण दूध मिश्री के साथ मिला कर पीने से वीर्य का पतलापन दूर हो जाता है।

2 चम्मच सतावरी चूर्ण में शक्कर मिलें दूध के साथ सुबह-शाम पीने से नपुंसकता दूर होती है।

या सतावरी और असगन्ध के 5 ग्राम चूर्ण को दूध में उबाल कर पीने से नपुंसकता ठीक हो जाती है।

5 ग्राम सतावरी को एक गिलास दूध में धीमी आंच पर मिश्री मिलाकर 5 मिनट तक उबालें, इस दूध को पीने से ही कुछ महीनों में नपुंसकता बिलकुल ठीक हो जाती है। और सहवास की कमजोरी दूर

हो जाती है।

शारीरिक ताकत के लिए 250 ग्राम सतावरी की जड़ का चूर्ण और बराबर की मिश्री को पीसकर और एक चम्मच मिश्रण को एक गिलास गुनगुने दूध के साथ सुबह-शाम लेने से स्वप्नदोष का रोग दूर

होकर शरीर मजबूत बनता है।

ताजा सतावरी की जड़ को बीच से चीरकर तिनके को निकाल दें और इसे 200 ग्राम दूध और मिश्री के साथ पिस कर खाएं तो भी धातु में वृद्धि होगी। और दूध के साथ इसके चूर्ण को पका कर खाने

से संभोग शक्ति बढ़ती है।

सतावरी या आंवला का रस शहद में मिला कर पीने से जल्द ही वीर्य शुद्ध होने लगता है। अथवा गोखुरू का काढ़ा बनाकर व शहद मिला कर पीने से भी वीर्य शुद्ध हो जाता है।

गोखरू और सतावरी का शर्बत बनाकर पीने से मूत्रविकार ठीक हो जाते हैं। पेशाब के साथ धातु का आना भी बंद हो जाता है।

25 ग्राम सतावरी के रस में बराबर का गाय का दूध मिलाकर पीने से गुर्दे की पथरी टूट टूट कर पेशाब के रस्ते बाहर निकल जाती है।

20 ग्राम गोखरू और बराबर का सतावरी चूर्ण को 2 गिलास पानी में उबालकर, छानकर उसमे 10 ग्राम मिश्री और 2 चम्मच शहद मिलाकर पिलाने से रोगी की पेशाब की रूकावट और जलन खत्म हो

जाती है।

5 ग्राम सतावरी के चूर्ण को दूध के साथ रोजाना सेवन करने से बवासीर के मस्से ठीक हो जाते हैं।

2 चम्मच सतावरी की ताजा जड़ का रस150 ग्राम दूध के साथ सुबह-शाम पीने से हिस्टीरिया ठीक हो जाता है।

एक ग्राम सतावरी चूर्ण में समान मात्रा में घी मिलाकर दूध में उबालकर पीने से मूर्च्छा अम्लपित, रक्त पित, वात विकार, दमा और तृष्णा आदि रोग खत्म हो जाते है।वात रोग के रोगी समान मात्रा

में सतावरी और पीपल को साथ साथ पीसकर छान ले और नियमित एक चम्मच चूर्ण सुबह दूध से ले वात रोगों में लाभ होता है।

सतावरी की जड़ का चूर्ण और मिश्री बराबर मात्रा में मिलाकर पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण1चम्मच दिन में 3 बार 1 कप दूध के साथ पिलाने से न केवल स्त्रियों के स्तनों में दूध की कमी दूर होगी,

बल्कि मासिक स्राव के बाद आई कमजोरी भी दूर होगी।

सतावरी को गाय के दूध में पीस कर सेवन करने से स्त्री का दूध मीठा और पौष्टिक हो जाता है।समान मात्रा में सतावरी, सौंफ, बिदारीकंद को पीसकर 5 ग्राम दूध या पानी से लेने से महिलाओं की

छाती का जमा हुआ दूध उतरने लगता है।

सतावरी और कमलनाल को समान मात्रा में लेकर पीसे और गाय के दूध के साथ सेवन करे इससे सातवें महीने में गर्भ के रोग नष्ट होते हैं।

शहद के साथ सतावरी का चूर्ण सेवन करने से या शतावर के रस को शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 चम्मच सुबह शाम सेवन करने से प्रदर रोग मे आराम आता है।

या सतावरी चूर्ण को एक गिलास दूध या पानी के साथ मिलाकर उबाले आधा रह जाने पर खांड मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर रोग ठीक हो जाता है।

रक्तपित्त के लिए 250 मिलीलीटर दूध में सतावरी की जड़ तथा गोखरू का 5 -5 ग्राम चूर्ण मिला कर आधा रह जाने तक उबाले यह दूध रोगी को दिन में 2 बार दे रक्तपित्त ठीक होगा।

अथवा एक किलो पानी में 15 -15 ग्राम गोखरू और सतावरी की जड़ तथा एक गिलास गाय का दूध मिला कर आधा रह जाने तक उबाले और रोगी स्त्री को दिन में 2 – 3 बार पिलाये योनी से

रक्त स्राव रुक जाएगा।

विशेष:- एक चम्मच का अर्थ है चाय का छोटा चम्मच (5 ग्राम) एक गिलास यानी के 250 ग्राम( दूध पानी आदि)

सतावरी सिर में दर्द पैदा करता है। लेकिन शहद के साथ सतावरी का सेवन करने से इसका यह दोष खत्म हो जाता है। 

आंवले के प्रयोग

आंवले के प्रयोग  

वमन (उल्टी) : -* हिचकी तथा उल्टी में आंवले का 10-20 मिलीलीटर रस, 5-10 ग्राम मिश्री मिलाकर देने से आराम होता है। इसे दिन में 2-3 बार लेना चाहिए। केवल इसका चूर्ण 10-50 ग्राम की

मात्रा में पानी के साथ भी दिया जा सकता है।


* त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) से पैदा होने वाली उल्टी में आंवला तथा अंगूर को पीसकर 40 ग्राम खांड, 40 ग्राम शहद और 150 ग्राम जल मिलाकर कपड़े से छानकर पीना चाहिए।



*आंवले के 20 ग्राम रस में एक चम्मच मधु और 10 ग्राम सफेद चंदन का चूर्ण मिलाकर पिलाने से वमन (उल्टी) बंद होती है।

* आंवले के रस में पिप्पली का बारीक चूर्ण और थोड़ा सा शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आने के रोग में लाभ होता है।

* आंवला और चंदन का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर 1-1 चम्मच चूर्ण दिन में 3 बार शक्कर और शहद के साथ चाटने से गर्मी की वजह से होने वाली उल्टी बंद हो जाती है।

* आंवले का फल खाने या उसके पेड़ की छाल और पत्तों के काढ़े को 40 ग्राम सुबह और शाम पीने से गर्मी की उल्टी और दस्त बंद हो जाते हैं।

* आंवले के रस में शहद और 10 ग्राम सफेद चंदन का बुरादा मिलाकर चाटने से उल्टी आना बंद हो जाती है।

संग्रहणी : -मेथी दाना के साथ इसके पत्तों का काढ़ì#2366; बनाकर 10 से 20 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार पिलाने से संग्रहणी मिट जाती है।

"मूत्रकृच्छ (पेशाब में कष्ट या जलन होने पर) : -* आंवले की ताजी छाल के 10-20 ग्राम रस में दो ग्राम हल्दी और दस ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से मूत्रकृच्छ मिटता है।

* आंवले के 20 ग्राम रस में इलायची का चूर्ण डालकर दिन में 2-3 बार पीने
से मूत्रकृच्छ मिटता है।

विरेचन (दस्त कराना) : -रक्त पित्त रोग में, विशेषकर जिन रोगियों को विरेचन कराना हो, उनके लिए आंवले के 20-40 मिलीलीटर रस में पर्याप्त मात्रा में शहद और चीनी को मिलाकर सेवन कराना

चाहिए।

अर्श (बवासीर) : -* आंवलों को अच्छी तरह से पीसकर एक मिट्टी के बरतन में लेप कर देना चाहिए। फिर उस बरर्तन में छाछ भरकर उस छाछ को रोगी को पिलाने से बवासीर में लाभ होता है।

* बवासीर के मस्सों से अधिक खून के बहने में 3 से 8 ग्राम आंवले के चूर्ण का सेवन दही की मलाई के साथ दिन में 2-3 बार करना चाहिए।

* सूखे आंवलों का चूर्ण 20 ग्राम लेकर 250 ग्राम पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रात भर भिगोकर रखें। दूसरे दिन सुबह उसे हाथों से मलकर छान लें तथा छने हुए पानी में 5 ग्राम चिरचिटा

की जड़ का चूर्ण और 50 ग्राम मिश्री मिलाकर पीयें। इसको पीने से बवासीर कुछ दिनों में ही ठीक हो जाती है और मस्से सूखकर गिर जाते हैं।

* सूखे आंवले को बारीक पीसकर प्रतिदिन सुबह-शाम 1 चम्मच दूध या छाछ में मिलाकर पीने से खूनी बवासीर ठीक होती है।

* आंवले का बारीक चूर्ण 1 चम्मच, 1 कप मट्ठे के साथ 3 बार लें।

* आंवले का चूर्ण एक चम्मच दही या मलाई के साथ दिन में तीन बार खायें।

शुक्रमेह : -धूप में सुखाए हुए गुठली रहित आंवले के 10 ग्राम चूर्ण में दुगनी मात्रा में मिश्री मिला लें। इसे 250 ग्राम तक ताजे जल के साथ 15 दिन तक लगातार सेवन करने से स्वप्नदोष

(नाइटफॉल), शुक्रमेह आदि रोगों में निश्चित रूप से लाभ होता है।

खूनी अतिसार (रक्तातिसार) : -यदि दस्त के साथ अधिक खून निकलता हो तो आंवले के 10-20 ग्राम रस में 10 ग्राम शहद और 5 ग्राम घी मिलाकर रोगी को पिलायें और ऊपर से बकरी का दूध

100 ग्राम तक दिन में 3 बार पिलाएं।

रक्तगुल्म (खून की गांठे) : -आंवले के रस में कालीमिर्च डालकर पीने से रक्तगुल्म खत्म हो जाता है।

प्रमेह (वीर्य विकार) : -* आंवला, हरड़, बहेड़ा, नागर-मोथा, दारू-हल्दी, देवदारू इन सबको समान मात्रा में लेकर इनका काढ़ा बनाकर 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम प्रमेह के रोगी को पिला दें।

* आंवला, गिलोय, नीम की छाल, परवल की पत्ती को बराबर-बराबर 50 ग्राम की मात्रा में लेकर आधा किलो पानी में रातभर भिगो दें। इसे सुबह उबालें, उबलते-उबलते जब यह चौथाई मात्रा में शेष

बचे तो इसमें 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट होती है।

पित्तदोष : -आंवले का रस, शहद, गाय का घी इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर आपस में घोटकर लेने से पित्त दोष तथा रक्त विकार के कारण नेत्र रोग ठीक होते हैं| 

अनन्त-मूल (कृष्णा सारिवा) औषधीय प्रयोग

अनन्त-मूल (कृष्णा सारिवा) औषधीय प्रयोग 

विभिन्न भाषाओं के नाम :
हिंदी कालीसर, कालीदूधी, श्यामलता, सारिवा।

संस्कृत कृष्णसारिवा, कृष्णमूली, कालपेशी, चंदन बंगाली सारिवा कालघंटिका, सुभद्रा श्यामलता।
मराठी मोठीकावड़ी, उपरसरी, कालीकावड़ी,
गुजराती काली उपलसरी, धूरीबेल।
बंगला श्यामलता, दूधी, कलघंटी।
पंजाबी अनन्तमूल।

अंग्रेजी इंडियन सारसापरीला (Indian Sasaprila.P.)
लैटिन इकनोकार्पस फ्रटीसंस (Ichnocarpust Frutescens)


गुण: यह वात पित्त, रक्तविकार, प्यास, अरुचि, उल्टी, बुखारनाशक, शीतल, वीर्यवर्द्धक, कफनाशक, मधुर, धातुवर्द्धक, भारी, स्निग्ध, कड़वी, सुगन्धित, स्तनों के दूध को शुद्ध करने वाला, जलन,

मंदाग्नि और सांस-खांसी नाशक है।

विभिन्न रोगों में अनन्तमूल से उपचार:

1 सिर दर्द :-*अनन्तमूल की जड़ को पानी में घिसने से बने लेप को गर्म करके मस्तक पर लगाने से पीड़ा दूर होती है।
*लगभग 6 ग्राम अनन्तमूल को 3 ग्राम चोपचीनी के साथ खाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।"

2 बच्चों का सूखा रोग :-अनन्तमूल की जड़ और बायबिडंग का चूर्ण बराबर की मात्रा में मिलाकर आधे चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम सेवन कराने से बच्चे का स्वास्थ्य सुधर जाता है।

3 पथरी और पेशाब की रुकावट :-अनन्तमूल की जड़ के 1 चम्मच चूर्ण को 1 कप दूध के साथ 2 से 3 बार पीने से पेशाब की रुकावट दूर होकर पथरी रोग में लाभ मिलता है। मूत्राशय (वह स्थान

जहां पेशाब एकत्रित होता है) का दर्द भी दूर होता है।

4 रक्तशुद्धि हेतु (खून साफ करने के लिए) :-100 ग्राम अनन्तमूल का चूर्ण, 50 ग्राम सौंफ और 10 ग्राम दालचीनी मिलाकर चाय की तरह उबालें, फिर इसे छानकर 2-3 बार नियमित रूप से पीने से

खून साफ होकर अनेक प्रकार के त्वचा रोग दूर होंगे।

5 मुंह के छाले :-शहद के साथ अनन्तमूल की जड़ का महीन चूर्ण मिलाकर छालों पर लगाएं।

6 घाव :-अनन्तमूल का चूर्ण घाव पर बांधते रहने से वह जल्द ही भर जाता है। घाव पर अनन्तमूल पीसकर लेप करने से लाभ होता है।

7 पीलिया (कामला) :-*1 चम्मच अनन्तमूल का चूर्ण और 5 कालीमिर्च के दाने मिलाकर एक कप पानी में उबालें। पानी आधा रह जाए, तब छानकर इसकी एक मात्रा नियमित रूप से एक हफ्ते तक

सुबह खाली पेट पिलाने से रोग दूर हो जाएगा।

*अनन्तमूल की जड़ की छाल 2 ग्राम और 11 कालीमिर्च दोनों को 25 मिलीलीटर पानी के साथ पीसकर 7 दिन पिलाने से आंखों एवं शरीर दोनों का पीलापन दूर हो जाता है तथा कामला रोग से पैदा

होने वाली अरुचि और बुखार भी नष्ट हो जाता है।"

8 सर्प के विष में :-चावल उबालने के पश्चात उसके पानी को किसी बर्तन में निकालकर, अनन्तमूल की जड़ का महीन चूर्ण 1 चम्मच मिलाकर दिन में 2 या 3 बार पिलाने से लाभ होगा।

9 गर्भपात की चिकित्सा :-*जिन स्त्रियों को बार-बार गर्भपात होता हो, उन्हें गर्भस्थापना होते ही नियमित रूप से सुबह-शाम 1-1 चम्मच अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण सेवन करते रहना चाहिए। इससे

गर्भपात नहीं होगा और शिशु भी स्वस्थ और सुंदर होगा।


*उपदंश या सूजाक के कारण यदि बार-बार गर्भपात हो जाता हो तो अनन्तमूल का काढ़ा 3 से 6 ग्राम की मात्रा में गर्भ के लक्षण प्रकट होते ही सेवन करना करना प्रारम्भ कर देना चाहिए। इससे गर्भ

नष्ट होने का भय नहीं रहता है। इससे कोई भी आनुवांशिक रोग होने वाले बच्चे पर नहीं होता है। "

10 नेत्र रोग (आंखों की बीमारी) :-*अनन्तमूल की जड़ को बासी पानी में घिसकर नेत्रों में अंजन करने से या इसके पत्तों की राख कपड़े में छानकर शहद के साथ आंखों में लगाने से आंख की फूली

कट जाती है।

*अनन्तमूल के ताजे मुलायम पत्तों को तोड़ने से जो दूध निकलता है उसमें शहद मिलाकर आंखों में लगाने से नेत्र रोगों में लाभ होता है।
*अनन्तमूल से बने काढ़े को आंखों में डालने से या काढ़े में शहद मिलाकर लगाने से नेत्र रोगों में लाभ होता है।"

11 दमा :-दमे में अनन्तमूल की 4 ग्राम जड़ और 4 ग्राम अडू़से के पत्ते के चूर्ण को दूध के साथ दोनों समय सेवन करने से सभी श्वास व वातजन्य रोगों में लाभ होता है।

12 लंबे बालों के लिए :-अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण 2-2 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार पानी के साथ सेवन करने से सिर का गंजापन दूर होता है।

13 दंत रोग :-अनन्तमूल के पत्तों को पीसकर दांतों के नीचे दबाने से दांतों के रोग दूर होते हैं।

14 स्तनशोधक :-अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण 3 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से स्तनों की शुद्धि होती है। यह दूध को बढ़ा देता है। जिन महिलाओं के बच्चे बीमार और कमजोर हो, उन्हें अनन्तमूल

की जड़ का सेवन करना चाहिए।

15 पेट के दर्द में :-अनन्तमूल की जड़ को 2-3 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी में घोटकर पीने से पेट दर्द नष्ट होता है।

16 मंदाग्नि (अपच) :-अनन्तमूल का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से पाचन क्रिया बढ़ती है। इससे पाचनशक्ति बढ़ती है तथा रक्तपित्त दोष का नाश होता है।

17 मूत्रविकार (पेशाब की खराबी) :-अनन्तमूल की छोटी जड़ को केले के पत्ते में लपेटकर आग की भूभल में रख दें। जब पत्ता जल जाये तो जड़ को निकालकर भुने हुए जीरे और शक्कर के साथ

पीसकर, गाय का घी मिलाकर सुबह-शाम लेने से मूत्र और वीर्य सम्बंधी विकार दूर होते हैं। बारीक पिसी हुई अनन्तमूल की जड़ के चूर्ण का लेप मूत्रेन्द्रिय पर करने से मूत्रेन्द्रिय की जलन मिटती है।

18 अश्मरी (पथरी) में :-अश्मरी एवं मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट होना) में अनन्तमूल की जड़ का 5 ग्राम चूर्ण गाय के दूध के साथ दिन में सुबह और शाम सेवन करने से लाभ होता है।

19 सन्धिवात (जोड़ों का दर्द) :-अनन्तमूल के चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार देने से सन्धिवात में लाभ होता है।

20 रक्तविकार :-*अनन्तमूल 30 ग्राम, जौकुट कर 1 लीटर पानी में पकावें, जब यह आठवां भाग शेष बचे तो इसे छानकर उचित मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से खुजली, दाद, कुष्ठ आदि

रक्तविकार दूर होते हैं।

*अनन्तमूल 500 ग्राम जौकुट कर 500 मिलीलीटर खौलते हुए पानी में भिगो दें और 2 घण्टे बाद छान लें। 50 ग्राम की मात्रा में दिन में 4-5 बार पिलाने से रक्तविकार और त्वचा के विकार शीघ्र दूर

होते हैं।


*पीपल की छाल और अनन्तमूल इन दोनों को चाय के समान फांट (घोल) बनाकर सेवन करने से दाद-खाज, खुजली, फोड़े-फुन्सी तथा गर्मी के विकारों में लाभ होता है।


*सफेद जीरा 1 चम्मच और अनन्तमूल का चूर्ण 1 चम्मच दोनों का काढ़ा बनाकर पिलाने से खून साफ हो जाता है।

*फोड़े-फुन्सी-गंडमाला और उपदंश सम्बंधी रोग मिटाने के लिए अनन्तमूल की जड़ों का 75 से 100 मिलीलीटर तक काढ़ा दिन में 3 बार पिलाना चाहिए।

*अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण 1 ग्राम और बायविडंग का चूर्ण 1 ग्राम दोनों को पीसकर देने से अधिक गम्भीर बच्चे भी नवजीवन पा जाते हैं।"

21 दाह (जलन) :-अनन्तमूल चूर्ण को घी में भूनकर लगभग आधा ग्राम से 1 ग्राम तक चूर्ण, 5 ग्राम शक्कर के साथ कुछ दिन तक सेवन करने से चेचक, टायफायड आदि के बाद की शरीर में होने

वाली गर्मी की जलन दूर हो जाती है।

22 ज्वर (बुखार) :-अनन्तमूल की जड़, खस, सोंठ, कुटकी व नागरमोथा सबको बराबर लेकर पकायें, जब यह आठवां हिस्सा शेष बचे तो उतारकर ठंडा कर लें। इस काढे़ को पिलाने से सभी प्रकार के

बुखार दूर होते हैं।

23 विषम ज्वर (टायफाइड):-अनंनतमूल की जड़ की छाल का 2 ग्राम चूर्ण सिर्फ चूना और कत्था लगे पाने के बीड़े में रखकर खाने से लाभ होता है।

24 वात-कफ ज्वर :-अनन्तमूल, छोटी पीपल, अंगूर, खिरेंटी और शालिपर्णी (सरिवन) को मिलाकर बना काढ़ा गर्म-गर्म पीने से वात का बुखार दूर हो जाता है।

25 बालों का झड़ना (गंजेपन का रोग) :-2 ग्राम अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण रोजाना खाने से सिर के बाल उग आते हैं और सफेद बाल काले होने लगते हैं।

26 खूनी दस्त :-अनन्तमूल का चूर्ण 1 ग्राम, सोंठ, गोंद या अफीम को थोड़ी-सी मात्रा में लेकर दिन में सुबह और शाम सेवन करने से खूनी दस्त बंद हो जाता है।

27 मूत्र के साथ खून का आना :-अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण 50 ग्राम से 100 ग्राम को गिलोय और जीरा के साथ लेने से जलन कम होती है और पेशाब के साथ खून आना बंद होता है।

28 कमजोरी :-अनन्तमूल के चूर्ण के घोल को वायविडंग के साथ 20-30 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन करने से कमजोरी मिट जाती है।

29 प्रदर रोग :-50-100 ग्राम अनन्तमूल के चूर्ण को पानी के साथ प्रतिदिन 2 बार सेवन करने से प्रदर में फायदा होता है।

30 उपदंश (सिफिलिस) में :-उपदंश से पैदा होने वाले रोगों में अनन्तमूल का चूर्ण रोज 2 मिलीग्राम से 12 मिलीग्राम तक खाने से लाभ होता है।

31 पेशाब का रंग काला और हरा होना :-अगर पेशाब का रंग बदलने के साथ-साथ गुर्दे में भी सूजन हो रही हो तो 50 से 100 ग्राम अनन्तमूल का चूर्ण गिलोय और जीरे के साथ देने से लाभ होता

है।

32 होठों का फटना :-अनन्तमूल की जड़ को पीसकर होठ पर या शरीर के किसी भी भाग पर जहां पर त्वचा के फटने की वजह से खून निकलता हो इसका लेप करने से लाभ होता है।

33 एड्स :-*अनन्तमूल का फांट 40 से 80 मिलीलीटर या काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर प्रतिदिन में 3 बार पीयें।

*अनन्तमूल को कपूरी, सालसा आदि नामों से जाना जाता है। यह अति उत्तम खून शोधक है। अनन्तमूल के चूर्ण के सेवन से पेशाब की मात्रा दुगुनी या चौगुनी बढ़ती है। पेशाब की अधिक मात्रा होने

से शरीर को कोई हानि नहीं होती है। यह जीवनी-शक्ति को बढ़ाता है, शक्ति प्रदान करता है। यह मूत्र विरेचन (मूत्र साफ करने वाला), खून साफ करना, त्वचा को साफ करना, स्तन्यशोध (महिला के

स्तन को शुद्ध करना), घाव भरना, शक्ति बढ़ाना, जलन खत्म करना आदि गुणों से युक्त है। इसका चूर्ण 50 मिलीग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह शाम खायें। यह सुजाक जैसे रोगों को दूर करता

है।"

34 गठिया रोग :-लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अन्तमूल के रोजाना सेवन से गठिया रोग में उत्पन्न भोजन की अरुचि (भोजन की इच्छा न करना) दूर हो जाता है। गठिया रोग में अनन्त की जड़

को फेंटकर 40 मिलीलीटर रोजाना सुबह-शाम रोगी को सेवन कराने से रोग ठीक होता है।

35 गंडमाला (स्क्रोफुला) :-अनन्तमूल और विडंगभेद को पीसकर पानी में मिलाकर काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाने और गांठों पर लगाने से गंडमाला (गले की गांठे) दूर हो जाती हैं

दूध पीने के नियम MILK

दूध पीने के नियम MILK

बोर्नविटा , होर्लिक्स के विज्ञापनों के चलते माताओं के मन में यह बैठ जाता है की बच्चों को ये सब डाल के दो कप दूध पिला दिया बस हो गया . चाहे बच्चे दूध पसंद करे ना करे , उलटी करे , वे

किसी तरह ये पिला के ही दम लेती है . फिर भी बच्चों में केलशियम की कमी , लम्बाई ना बढना , इत्यादि समस्याएँ देखने में आती है .आयुर्वेद के अनुसार दूध पिने के कुछ नियम है ---


- सुबह सिर्फ काढ़े के साथ दूध लिया जा सकता है .
- दोपहर में छाछ पीना चाहिए . दही की प्रकृति गर्म होती है ;
जबकि छाछ की ठंडी .

- रात में दूध पीना चाहिए पर बिना शक्कर के ; हो सके तो गाय का घी
१- २ चम्मच दाल के ले . दूध की अपनी प्राकृतिक मिठास होती है जो हम शक्कर डाल देने के कारण अनुभव ही नहीं कर पाते .


- एक बार बच्चें अन्य भोजन लेना शुरू कर दे जैसे रोटी , चावल , सब्जियां तब उन्हें गेंहूँ , चावल और सब्जियों में मौजूद केल्शियम प्राप्त होने लगता है . अब वे केल्शियम के लिए सिर्फ दूध पर

निर्भर नहीं .

- कपालभाती प्राणायाम और नस्य लेने से बेहतर केल्शियम (ग्रहण) एब्ज़ोर्प्शन होता है और केल्शियम , आयरन और विटामिन्स की कमी नहीं हो सकती साथ ही बेहतर शारीरिक और मानसिक

विकास होगा .

- दूध के साथ कभी भी नमकीन या खट्टे पदार्थ ना ले .त्वचा विकार हो सकते है .

- बोर्नविटा , कॉम्प्लान या होर्लिक्स किसी भी प्राकृतिक आहार से अच्छे नहीं हो सकते . इनके लुभावने विज्ञापनों का कभी भरोसा मत करिए . बच्चों को खूब चने , दाने , सत्तू , मिक्स्ड आटे के

लड्डू खिलाइए

- प्रयत्न करे की देशी गाय का दूध ले .
- जर्सी या दोगली गाय से भैंस का दूध बेहतर है .
- दही अगर खट्टा हो गया हो तो भी दूध और दही ना मिलाये , खीर और कढ़ी एक साथ ना खाए .खीर के साथ नमकीन पदार्थ ना खाए .

- अध जमे दही का सेवन ना करे .
- चावल में दूध के साथ नमक ना डाले .
- सूप में ,आटा भिगोने के लिए , दूध इस्तेमाल ना करे .

- द्विदल यानी की दालों के साथ दही का सेवन विरुद्ध आहार माना जाता है . अगर करना ही पड़े तो दही को हिंग जीरा की बघार दे कर उसकी प्रकृति बदल लें .

- रात में दही या छाछ का सेवन ना करे .

WALL NUT अखरोट के औषधीय प्रयोग

WALL NUT अखरोट के औषधीय प्रयोग 

परिचय :अखरोट के पेड़ बहुत सुन्दर और सुगन्धित होते हैं, इसकी दो जातियां पाई जाती हैं। जंगली अखरोट 100 से 200 फीट तक ऊंचे, अपने आप उगते हैं। इसके फल का छिलका मोटा होता है।

कृषिजन्य 40 से 90 फुट तक ऊंचा होता है और इसके फलों का छिलका पतला होता है। इसे कागजी अखरोट कहते हैं। इससे बन्दूकों के कुन्दे बनाये जाते हैं।

विभिन्न भाषाओं में नाम :


संस्कृत शैलभव, अक्षोर, कर्पपाल अक्षोट, अक्षोड।
हिंदी अखरोट।
बंगाली आक्रोट  आखरोट, आकोट।
मलयालम अक्रोड।
मराठी अखरोड, अक्राड़।
तेलगू अक्षोलमु।
गुजराती आखोड।
फारसी चर्तिगज, गौज, चारमग्न, गिर्दगां।
अरबी जौज।
अंग्रेजी वलनट
लैटिन जगलंस रेगिया


रंग : अखरोट का रंग भूरा होता है।
स्वाद : इसका स्वाद फीका, मधुर, चिकना (स्निग्ध) और स्वादिष्ट होता है।

स्वरूप : पर्वतीय देशों में होने वाले पीलू को ही अखरोट कहते हैं। इसका नाम कर्पपाल भी है। इसके पेड़ अफगानिस्तान में बहुत होते हैं तथा फूल सफेद रंग के छोटे-छोटे और गुच्छेदार होते हैं। पत्ते

गोल लम्बे और कुछ मोटे होते हैं तथा फल गोल-गोल मैनफल के समान परन्तु अत्यंत कड़े छिलके वाले होते हैं। इसकी मींगी मीठी बादाम के समान पुष्टकारक और मजेदार होती है।
स्वभाव : अखरोट गरम व खुष्क प्रकृति का होता है।
हानिकारक : अखरोट पित्त प्रकृति वालों के लिए हानिकारक होता है।
दोषों को दूर करने वाला : अनार का पानी अखरोट के दोषों को दूर करता है।
तुलना : अखरोट की तुलना चिलगोजा और चिरौंजी से की जा सकती है। मात्रा : अखरोट का सेवन 10 ग्राम से 20 ग्राम तक की मात्रा में कर सकते हैं।
गुण : अखरोट बहुत ही बलवर्धक है, हृदय को कोमल करता है, हृदय और मस्तिष्क को पुष्ट करके उत्साही बनाता है इसकी भुनी हुई गिरी सर्दी से उत्पन्न खांसी में लाभदायक है। यह वात, पित्त,

टी.बी., हृदय रोग, रुधिर दोष वात, रक्त और जलन को नाश करता है।

विभिन्न रोगों में अखरोट से उपचार:

1 टी.बी. (यक्ष्मा) के रोग में :- 3 अखरोट और 5 कली लहसुन पीसकर 1 चम्मच गाय के घी में भूनकर सेवन कराने से यक्ष्मा में लाभ होता है।

2 पथरी :- *साबुत (छिलके और गिरी सहित) अखरोट को कूट-छानकर 1 चम्मच सुबह-शाम ठंडे पानी में कुछ दिनों तक नियमित रूप से सेवन कराने से पथरी मूत्र-मार्ग से निकल जाती है।
*अखरोट को छिलके समेत पीसकर चूर्ण बनाकर रखें। 1-1 चम्मच चूर्ण ठंडे पानी के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम खायें। इससे रोग में पेड़ू का दर्द और पथरी ठीक होती है।"

3 शैय्यामूत्र (बिस्तर पर पेशाब करना) :- प्राय: कुछ बच्चों को बिस्तर में पेशाब करने की शिकायत हो जाती है। ऐसे बाल रोगियों को 2 अखरोट और 20 किशमिश प्रतिदिन 2 सप्ताह तक सेवन करने

से यह शिकायत दूर हो जाती है।

4 सफेद दाग :- अखरोट के निरन्तर सेवन से सफेद दाग ठीक हो जाते हैं।

5 फुन्सियां :- यदि फुन्सियां अधिक निकलती हो तो 1 साल तक रोजाना प्रतिदिन सुबह के समय 5 अखरोट सेवन करते रहने से लाभ हो जाता है।

6 जी-मिचलाना :- अखरोट खाने से जी मिचलाने का कष्ट दूर हो जाता है।

7 मरोड़ :- 1 अखरोट को पानी के साथ पीसकर नाभि पर लेप करने से मरोड़ खत्म हो जाती है।

8 बच्चों के कृमि (पेट के कीड़े) :- *कुछ दिनों तक शाम को 2 अखरोट खिलाकर ऊपर से दूध पिलाने से बच्चों के पेट के कीडे़ मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।
*अखरोट की छाल का काढ़ा 60 से 80 मिलीलीटर पिलाने से आंतों के कीड़े मर जाते हैं।"

9 मस्तिष्क शक्ति हेतु :- *अखरोट की गिरी को 25 से 50 ग्राम तक की मात्रा में प्रतिदिन खाने से मस्तिष्क शीघ्र ही सबल हो जाता है।
*अखरोट खाने से मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है।"

10 बूढ़ों की निर्बलता :- 8 अखरोट की गिरी और चार बादाम की गिरी और 10 मुनक्का को रोजाना सुबह के समय खाकर ऊपर से दूध पीने से वृद्धावस्था की निर्बलता दूर हो जाती है।

11 अपस्मार :- अखरोट की गिरी को निर्गुण्डी के रस में पीसकर अंजन और नस्य देने से लाभ होता है।

12 नेत्र ज्योति (आंखों की रोशनी) :- 2 अखरोट और 3 हरड़ की गुठली को जलाकर उनकी भस्म के साथ 4 कालीमिर्च को पीसकर अंजन करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।

13 कंठमाला :- अखरोट के पत्तों का काढ़ा 40 से 60 मिलीलीटर पीने से व उसी काढ़े से गांठों को धोने से कंठमाला मिटती है।

14 दांतों के लिए :- अखरोट की छाल को मुंह में रखकर चबाने से दांत स्वच्छ होते हैं। अखरोट के छिलकों की भस्म से मंजन करने से दांत मजबूत होते हैं।

15 स्तन में दूध की वृद्धि के लिए :- गेहूं की सूजी एक ग्राम, अखरोट के पत्ते 10 ग्राम को एक साथ पीसकर दोनों को मिलाकर गाय के घी में पूरी बनाकर सात दिन तक खाने से स्त्रियों के स्तनों

में दूध की वृद्धि होती है।

16 खांसी (कास) :- *अखरोट गिरी को भूनकर चबाने से लाभ होता है।
*छिलके सहित अखरोट को आग में डालकर राख बना लें। इस राख की एक ग्राम मात्रा को पांच ग्राम शहद के साथ चटाने से लाभ होता है।"

17 हैजा :- हैजे में जब शरीर में बाइटें चलने लगती हैं या सर्दी में शरीर ऐंठता हो तो अखरोट के तेल से मालिश करनी चाहिए।

18 विरेचन (पेट साफ करना) :- अखरोट के तेल को 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में 250 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह देने से मल मुलायम होकर बाहर निकल जाता है।

19 अर्श (बवासीर) होने पर :- *वादी बवासीर में अखरोट के तेल की पिचकारी को गुदा में लगाने से सूजन कम होकर पीड़ा मिट जाती है।
*अखरोट के छिलके की राख 2 से 3 ग्राम को किसी दस्तावर औषधि के साथ सुबह, दोपहर तथा शाम को खिलाने से खूनी बवासीर में खून का आना बंद हो जाता है।"

20 आर्त्तव जनन (मासिक-धर्म को लाना) :- *मासिक-धर्म की रुकावट में अखरोट के छिलके का काढ़ा 40 से 60 मिलीलीटर की मात्रा में लेकर 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पिलाने से

लाभ होता है।
*इसके फल के 10 से 20 ग्राम छिलकों को एक किलो पानी में पकायें, जब यह पानी आठवां हिस्सा शेष बचे तो इसे सुबह-शाम पिलाने से दस्त साफ हो जाता है।"

21 प्रमेह (वीर्य विकार) :- अखरोट की गिरी 50 ग्राम, छुहारे 40 ग्राम और बिनौले की मींगी 10 ग्राम एक साथ कूटकर थोड़े से घी में भूनकर बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर रखें, इसमें से 25 ग्राम

प्रतिदिन सेवन करने से प्रमेह में लाभ होता है। ध्यान रहे कि इसके सेवन के समय दूध न पीयें।

22 वात रोग :- अखरोट की 10 से 20 ग्राम की ताजी गिरी को पीसकर दर्द वाले स्थान पर लेप करें, ईंट को गर्मकर उस पर जल छिड़ककर कपड़ा लपेटकर उस स्थान पर सेंक देने से शीघ्र पीड़ा मिट

जाती है। गठिया पर इसकी गिरी को नियमपूर्वक सेवन करने से रक्त शुद्धि होकर लाभ होता है।

23 शोथ (सूजन) :- *अखरोट का 10 से 40 मिलीलीटर तेल 250 मिलीलीटर गौमूत्र (गाय के पेशाब) में मिलाकर पिलाने से सभी प्रकार की सूजन में लाभ होता है।
*वात-जन्य सूजन में इसकी 10 से 20 ग्राम अखरोट की गिरी को कांजी में पीसकर लेप करने से लाभ होता है।"

24 बूढ़ों के शरीर की कमजोरी :- 10 ग्राम अखरोट की गिरी को 10 ग्राम मुनक्का के साथ रोजाना सुबह खिलाना चाहिए।

25 दाद :- सुबह-सुबह बिना मंजन कुल्ला किए बिना 5 से 10 ग्राम अखरोट की गिरी को मुंह में चबाकर लेप करने से कुछ ही दिनों में दाद मिट जाती है।

26 नासूर :- अखरोट की 10 ग्राम गिरी को महीन पीसकर मोम या मीठे तेल के साथ गलाकर लेप करें।

27 घाव (जख्म) :- इसकी छाल के काढे़ से घावों को धोने से लाभ होता है।

28 नारू (गंदा पानी पीने से होने वाला रोग) :- *अखरोट की खाल को जल के साथ महीन पीसकर आग पर गर्म कर नहरुआ की सूजन पर लेप करने से तथा उस पर पट्टी बांधकर खूब सेंक देने से

नारू 10-15 दिन में गलकर बह जाता है।
*अखरोट की छाल को पानी में पीसकर गर्मकर नारू के घाव पर लगावें।"

29 कब्ज :- अखरोट के छिलकों को उबालकर पीने से दस्त में राहत मिलती है।

30 दस्त के लिए :- *अखरोट को पीसकर पानी के साथ मिलाकर नाभि पर लेप करने से पेट में मरोड़ और दस्त का होना बंद हो जाता है।
*अखरोट के छिलकों को पानी के साथ पीसकर पेट की नाभि पर लगाने से पेट में होने वाली मरोड़ के साथ आने वाले दस्त तुरंत बंद हो जाते हैं।"

31 खूनी बवासीर (अर्श) :- अखरोट के छिलके का भस्म (राख) बनाकर उसमें 36 ग्राम गुरुच मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से खूनी बवासीर (रक्तार्श) नष्ट होता है।

32 कमजोरी :- अखरोट की मींगी पौष्टिक होती है। इसके सेवन से कमजोरी मिट जाती है।

33 लकवा (पक्षाघात-फालिस-फेसियल, परालिसिस) :- रोजाना सुबह अखरोट का तेल नाक के छिद्रों में डालने से लकवा ठीक हो जाता है।

34 नष्टार्तव (बंद मासिक धर्म) :- अखरोट का छिलका, मूली के बीज, गाजर के बीज, वायविडंग, अमलतास, केलवार का गूदा सभी को 6-6 ग्राम की मात्रा में लेकर लगभग 2 लीटर पानी में पकायें

फिर इसमें 250 ग्राम की मात्रा में गुड़ मिला दें, जब यह 500 मिलीलीटर की मात्रा में रह जाए तो इसे उतारकर छान लेते हैं। इसे सुबह-शाम लगभग 50 ग्राम की मात्रा में मासिक स्राव होने के 1

हफ्ते पहले पिलाने से बंद हुआ मासिक-धर्म खुल जाता है।

35 दर्द व सूजन में :- किसी भी कारण या चोट के कारण हुए सूजन पर अखरोट के पेड़ की छाल पीसकर लेप करने से सूजन कम होती है।

36 पेट में कीड़े होने पर :- अखरोट को गर्म दूध के साथ सेवन करने से बच्चों के पेट में मौजूद कीड़े मर जाते हैं तथा पेट के दर्द में आराम देता है।

37 जोड़ों के (गठिया) रोग में :- *सुबह खाली पेट 5 ग्राम अखरोट की गिरी और 5 ग्राम पिसी हुई सोंठ को 1 चम्मच एरंड के तेल में पीसकर गुनगुने पानी से लें। इससे रोगी के घुटनों का दर्द दूर हो

जाता है।
*दर्द को दूर करने के लिए अखरोट का तेल जोड़ों पर लगाने से रोगी को लाभ मिलता है।"

38 हृदय की दुर्बलता होने पर :- अखरोट खाने से दिल स्वस्थ बना रहता है। रोज एक अखरोट खाने से हृदय के विकार 50 प्रतिशत तक कम हो जाते हैं। इससे हृदय की धमनियों को नुकसान

पहुंचाने वाले हानिकारक कॉलेस्ट्राल की मात्रा नियंत्रित रहती है। अखरोट के असर से शरीर में वसा को पचाने वाला तंत्र कुछ इस कदर काम करता है। कि हानिकारक कॉलेस्ट्राल की मात्रा कम हो जाती

है। हालांकि रक्त में वासा की कुल मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता। अखरोट में कैलोरी की अधिकता होने के बावजूद इसके सेवन से वजन नहीं बढ़ता और ऊर्जा स्तर बढ़ता है।

39 हाथ-पैरों की ऐंठन:- हाथ-पैरों पर अखरोट के तेल की मालिश करने से हाथ-पैरों की ऐंठन दूर हो जाती है।

40 गुल्यवायु हिस्टीरिया :- अखरोट और किसमिस को खाने और ऊपर से गर्म गाय का दूध पीने से लाभ मिलता है।

41 विसर्प-फुंसियों का दल बनना :- अगर फुंसिया बहुत ज्यादा निकलती हो तो पूरे साल रोजाना सुबह 4 अखरोट खाने से बहुत लाभ होता है।

42 वात रक्त दोष (खूनी की बीमारी) :- वातरक्त (त्वचा का फटना) के रोगी को अखरोट की मींगी (बीज) खिलाने से आराम आता है।

43 होठों का फटना :- अखरोट की मिंगी (बीज) को लगातार खाने से होठ या त्वचा के फटने की शिकायत दूर हो जाती है।

44 सफेद दाग होने पर :- रोजाना अखरोट खाने से श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) का रोग नहीं होता है और स्मरण शक्ति (याददाश्त) भी तेज हो जाती है।

45 याददाश्त कमजोर होना :- ऐसा कहा जाता है कि हमारे शरीर का कोई अंग
जिस आकार का होता है, उसी आकार का फल खाने से उस अंग को मजबूती मिलती है। अखरोट की बनावट हमारे दिमाग की तरह होती है इसलिए अखरोट खाने से दिमाग की शक्ति बढ़ती है।

याददाश्त मजबूत होती है।

46 कंठमाला के रोग में :- अखरोट के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से और कंठमाला की गांठों को उसी काढ़े से धोने से आराम मिलता है।

47 नाड़ी की जलन :- अखरोट की छाल को पीसकर लेप करने से नाड़ी की सूजन, जलन व दर्द मिटता है।

48 शरीर में सूजन :- अखरोट के पेड़ की छाल को पीसकर सूजन वाले भाग पर लेप की तरह से लगाने से शरीर के उस भाग की सूजन दूर हो जाती है।

तिल का आयुर्वेद में महत्त्व

 तिल का आयुर्वेद में महत्त्व 

तिलस्नायीतिलोद्व‌र्त्तीतिलहोमीतिलोदकी।
तिलभुक्तिलदाताचषट्तिला:पापनाशना:॥



अर्थात् तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल के तेल द्वारा शरीर में मालिश, तिल से ही यज्ञ में आहुति, तिल मिश्रित जल का पान, तिल का भोजन इनके प्रयोग से मकर संक्रांति का पुण्य फल प्राप्त

होता है और पाप नष्ट हो जाते हैं।

- इन सर्दियों में काले तिल लाये और साफ कर एक बोतल में भर कर रख लें । दिन में २-३ बार सौंफ की तरह फांक लें ; क्योंकि ये बहुत लाभकारी है ।

- आयुर्वेद में तिल को तीव्र असरकारक औषधि के रूप में जाना जाता है।

- काले और सफेद तिल के अतिररिकत लाल तिल भी होता है। सभी के अलग-अलग गुणधर्म हैं।

- यदि पौष्टिकता की बात करें तो काले तिल शेष दोनों से अधिक लाभकारी हैं। सफेद तिल की पौष्टिकता काले तिल से कम होती है जबकि लाल तिल निम्नश्रेणी का तिल माना जाता है।

- तिल में चार रस होते हैं। इसमें गर्म, कसैला, मीठा और चरपरा स्वाद भी पाया जाता है।

- तिल हजम करने के लिहाज से भारी होता है। खाने में स्वादिष्ट और कफनाशक माना जाता है। यह बालों के लिए लाभप्रद माना गया है।

- दाँतों की समस्या दूर करने के सथ ही यह श्वास संबंधी रोगों में भी लाभदायक है।

- स्तनपान कराने वाली माताओं में दूध की वृद्धि करता है।

- पेट की जलन कम करता है ।

- बुद्धि को बढ़ाता है।

- बार-बार पेशाब करने की समस्या पर नियंत्रण पाने के लिए तिल का कोई सानी नहीं है।

- यह स्वभाव से गर्म होता है इसलिए इसे सर्दियों में मिठाई के रूप में खाया जाता है। गजक, रेवड़ियाँ और लड्डू शीत ऋतु में ऊष्मा प्रदान करते हैं।

- तिल में विटामिन ए और सी छोड़कर वे सभी आवश्यक पौष्टिक पदार्थ होते हैं जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं। तिल विटामिन बी और आवश्यक फैटी एसिड्स से भरपूर है।

- इसमें मीथोनाइन और ट्रायप्टोफन नामक दो बहुत महत्त्वपूर्ण एमिनो एसिड्स होते हैं जो चना, मूँगफली, राजमा, चौला और सोयाबीन जैसे अधिकांश शाकाहारी खाद्य पदार्थों में नहीं होते। ट्रायोप्टोफन को शांति प्रदान करने वाला तत्व भी कहा जाता है जो गहरी नींद लाने में सक्षम है। यही त्वचा और बालों को भी स्वस्थ रखता है। मीथोनाइन लीवर को दुरुस्त रखता है और कॉलेस्ट्रोल को भी नियंत्रित रखता है।

- तिल बीज स्वास्थ्यवर्द्धक वसा का बड़ा स्त्रोत है जो चयापचय को बढ़ाता है।

- यह कब्ज भी नहीं होने देता।

- तिलबीजों में उपस्थित पौष्टिक तत्व,जैसे-कैल्शियम और आयरन त्वचा को कांतिमय बनाए रखते हैं।

- तिल में न्यूनतम सैचुरेटेड फैट होते हैं इसलिए इससे बने खाद्य पदार्थ उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकता है।



- सौ ग्राम सफेद तिल से १००० मिलीग्राम कैल्शियम प्राप्त होता हैं। बादाम की अपेक्षा तिल में छः गुना से भी अधिक कैल्शियम है।

- काले और लाल तिल में लौह तत्वों की भरपूर मात्रा होती है जो रक्तअल्पता के इलाज़ में कारगर साबित होती है।

- तिल में उपस्थित लेसिथिन नामक रसायन कोलेस्ट्रोल के बहाव को रक्त नलिकाओं में बनाए रखने में मददगार होता है।

- तिल के तेल में प्राकृतिक रूप में उपस्थित सिस्मोल एक ऐसा एंटी-ऑक्सीडेंट है जो इसे ऊँचे तापमान पर भी बहुत जल्दी खराब नहीं होने देता। आयुर्वेद चरक संहित में इसे पकाने के लिए सबसे अच्छा तेल माना गया है।

- मकर संक्रांति के पर्व पर तिल का विशेष महत्त्व माना जाता है। इस दिन इसे दान देने की परम्परा भी प्रचलित है। इस दिन तिल के उबटन से स्नान करके ब्राह्मणों एवं गरीबों को तिल एवं तिल के लड्डू दान किये जाते हैं। यह मौसम शीत ऋतु का होता है, जिसमें तिल और गुड़ से बने लड्डू शरीर को गर्मी प्रदान करते हैं। प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि संक्रांति के दिन तिल का तेल लगाकर स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल की आहुति देना, पितरों को तिल युक्त जल का अर्पण करना, तिल का दान करना एवं तिल को स्वयं खाना, इन छह उपायों से मनुष्य वर्ष भर स्वस्थ, प्रसन्न एवं पाप रहित रहता है।

- तैल शब्द की व्युत्पत्ति तिल शब्द से ही हुई है। जो तिल से निकलता वह है तैल। तिल का यह तेल अनेक प्रकार के सलादों में प्रयोग किया जाता है। तिल गुड़ का पराठा, तिल गुड़ और बाजरे से

मिलाए गए ठेकुए उत्तर भारत में विशेष रूप से प्रचलित हैं। करी को गाढ़ा करने के लिये छिकक्ल रहित तिल को पीसकर मसाले में भूनने की भी प्रथा अनेक देशों में है।

- अलीबाबा चालीस चोर की कहानी में सिमसिम शब्द का प्रयोग तिल के लिये ही किया गया है। यही सिमसिम यूरोप तक पहुँचते पहुँचते बिगड़कर अंग्रेजी सिसेम हो गया।

- यज्ञादि हविष्य में तिल प्रधानता से प्रयुक्त किया जाता है जिसे सभी देवता प्रसन्‍नता केसाथ ग्रहण करते हैं। मनुस्मृति में कहा गया है- त्रीणि श्राद्धे पवित्राणि दौहित्रः कुतपस्तिलाः। त्रीणि चात्र प्रशंसन्ति शौचमक्रोधमत्वराम्।। अर्थात श्राद्ध कर्म में काले तिल तथा लक्ष्मी आराधना में सफेद तिल की हविष्य प्रयोग करने से शीघ्र लाभ होता है। घृत में तिल मिलाकर श्री यज्ञ करने से माता लक्ष्मी की अति शीघ्र कृपा होती है।

- जन्म दिवस केअवसर पर बालकों को गाय के घृत में आधा चम्मच काले तिल का सेवन कराना भावी क‌ष्टों से निवारण का अचूक साधन है।

- व्यक्ति के हाथ से जितना तिल का दान किया जाता है उसका भविष्य उतना ही अच्छा बनता चला जाता है। प्रत्येक वैदिक कर्म में तिल की आवश्यकता होती है तथा इसके बिना कोई यज्ञ पूर्ण नहीं होता।

- तिल भगवान विष्णु को अति प्रिय है। इस लिये उनकी पूजा में तिल का प्रयोग किया जाता है।

- यह व्रत-पूजा में प्रयोग तथा खाने योग्य पदार्थ है।

तिल के घरेलू सुझाव-

* कब्ज दूर करने के लिये तिल को बारीक पीस लें एवं प्रतिदिन पचास ग्राम तिल के चूर्ण को गुड़, शक्कर या मिश्री के साथ मिलाकर फाँक लें।

* पाचन शक्ति बढ़ाने के लिये समान मात्रा में बादाम, मुनक्का, पीपल, नारियल की गिरी और मावा अच्छी तरह से मिला लें, फिर इस मिश्रण के बराबर तिल कूट पीसकर इसमें में मिलाएँ,

स्वादानुसार मिश्री मिलाएँ और सुबह-सुबह खाली पेट सेवन करें। इससे शरीर के बल, बुद्धि और स्फूर्ति में भी वृद्धि होती है।

* प्रतिदिन रात्रि में तिल को खूब चबाकर खाने से दाँत मजबूत होत हैं।

* यदि कोई जख्म हो गया हो तो तिल को पानी में पीसकर जख्म पर बांध दें, इससे जख्म शीघ्रता से भर जाता है।

* तिल के लड्डू उन बच्चों को सुबह और शाम को जरूर खिलाना चाहिए जो रात में बिस्तर गीला कर देते हैं। तिल के नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और रोग प्रतिरोधकशक्ति में वृद्धि होती है।

* पायरिया और दाँत हिलने के कष्ट में तिल के तेल को मुँह में १०-१५ मिनट तक रखें, फिर इसी से गरारे करें। इससे दाँतों के दर्द में तत्काल राहत मिलती है। गर्म तिल के तेल में हींग मिलाकर भी यह प्रयोग किया जा सकता है।

* पानी में भिगोए हुए तिल को कढ़ाई में हल्का सा भून लें। इसे पानी या दूध के साथ मिक्सी में पीस लें। सादा या गुड़ मिलाकर पीने से रक्त की कमी दूर होती है।

* जोड़ों के दर्द के लिये एक चाय के चम्मच भर तिल बीजों को रातभर पानी के गिलास में भिगो दें। सुबह इसे पी लें। या हर सुबह एक चम्मच तिल बीजों को आधा चम्मच सूखे अदरक के चूर्ण के साथ मिलाकर गर्म दूध के साथ पी लें। इससे जोड़ों का दर्द जाता रहेगा।

* तिल गुड़ के लड्डू खाने से मासिकधर्म से संबंधित कष्टों तथा दर्द में आराम मिलता है।

* भाप से पकाए तिल बीजों का पेस्ट दूध के साथ मिलाकर पुल्टिस की तरह लगाने से गठिया में आराम मिलता है।

पान के औषधीय गुण

 पान के औषधीय गुण 

भारतीय संस्कृति में पान को हर तरह से शुभ माना जाता है। धर्म, संस्कार, आध्यात्मिक एवं तांत्रिक क्रियाओं में भी पान का इस्तेमाल सदियों से किया जाता रहा है।


*****************इसके अलावा पान का रोगों को दूर भगाने में भी बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जाता है। खाना खाने के बाद और मुंह का जायका बनाए रखने के लिए पान बहुत ही कारगर

है। कई बीमारियों के उपचार में पान का इस्तेमाल लाभप्रद माना जाता है*****************************************

* पान में दस ग्राम कपूर को लेकर दिन में तीन-चार बार चबाने से पायरिया की शिकायत दूर हो जाती है। इसके इस्तेमाल में एक सावधानी रखना जरूरी होती है कि पान की पीक पेट में न जाने

पाए।

* चोट लगने पर पान को गर्म करके परत-परत करके चोट वाली जगह पर बांध लेना चाहिए। इससे कुछ ही घंटों में दर्द दूर हो जाता है। खांसी आती हो तो गर्म हल्दी को पान में लपेटकर चबाएं।

* यदि खांसी रात में बढ़ जाती हो तो हल्दी की जगह इसमें अजवाइन डालकर चबाना चाहिए। यदि किडनी खराब हो तो पान का इस्तेमाल बगैर कुछ मिलाए करना चाहिए। इस दौरान मसाले, मिर्च

एवं शराब (मांस एवं अंडा भी) से पूरा परहेज रखना जरूरी है।

* जलने या छाले पड़ने पर पान के रस को गर्म करके लगाने से छाले ठीक हो जाते हैं। पीलिया ज्वर और कब्ज में भी पान का इस्तेमाल बहुत फायदेमंद होता है। जुकाम होने#2375; पर पान में

लौंग डालकर खाने से जुकाम जल्दी पक जाता है। श्वास नली की बीमारियों में भी पान का इस्तेमाल अत्यंत कारगर है। इसमें पान का तेल गर्म करके सीने पर लगातार एक हफ्ते तक लगाना चाहिए।

* पान में मुलेठी डालकर खाने से मन पर अच्छा असर पड़ता है। यूं तो हमारे देश में कई तरह के पान मिलते हैं। इनमें मगही, बनारसी, गंगातीरी और देशी पान दवाइयों के रूप में ज्यादा कारगर

सिद्ध होते हैं। भूख बढ़ाने, प्यास बुझाने और मसूड़ों की समस्या से निजात पाने में बनारसी एवं देशी पान फायदेमंद साबित होता है।


**************************************
चेतावनी :कत्थे का प्रयोग मुंह के कैंसर का कारण भी हो सकता है। यहां सिर्फ पान के औषधीय महत्व की जानकारी दी गई है। 

अतिबला (खरैटी) Country Mallow से उपचार

अतिबला (खरैटी) Country Mallow से उपचार 

विभिन्न भाषाओं में नाम :


संस्कृत वला, वाट्यालिका, वाट्या, वाट्यालक


हिंदी खरैटी, वरयारी, वरियार
बंगाली श्वेतवेडेला
मराठी लघुचिकणा, खिरहंटी
गुजराती खपाट बलदाना
तेलगू मुपिढी
लैटिन सिडकार्सि फोलिया
अंग्रेजी हॉर्नडिएमव्ड सिडा



गुण : चारों प्रकार की अतिबला शीतल, मधुर, बलकारक तथा चेहरे पर चमक लाने वाली, चिकनी, भारी (ग्राही), खून की खराबी तथा टी.बी. के रोगों को दूर करने में सहायक है।


विभिन्न रोगों में अतिबला (खरैटी) से उपचार:


1 पेशाब का बार-बार आना : : -

खरैटी की जड़ की छाल का चूर्ण यदि चीनी के साथ सेवन करें तो पेशाब के बार-बार आने की बीमारी से छुटकारा मिलता है।

2 प्रमेह (वीर्य प्रमेह) :: -

अतिबला के बारीक चूर्ण को यदि दूध और मिश्री के साथ सेवन किया जाए तो यह प्रमेह को नष्ट करती है। महावला मूत्रकृच्छू को नष्ट करती है।

3 गीली खांसी :: -

अतिबला, कंटकारी, बृहती, वासा (अड़ूसा) के पत्ते और अंगूर को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लेते हैं। इसे 14 से 28 मिलीमीटर की मात्रा में 5 ग्राम शर्करा के साथ मिलाकर दिन में दो बार लेने

से गीली खांसी ठीक हो जाती है।

4 सीने में घाव (उर:क्षत) :: -

बलामूल का चूर्ण, अश्वगंधा, शतावरी, पुनर्नवा और गंभारी का फल समान मात्रा में लेकर चूर्ण तैयार लेते हैं। इसे 1 से 3 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीलीटर दूध के साथ दिन में 2 बार सेवन

करने से उर:क्षत नष्ट हो जाता है।

5 मलाशय का गिरना :: -

अतिबला (खिरेंटी) की पत्तियों को एरंडी के तेल में भूनकर मलाशय पर रखकर पट्टी बांध दें।

6 बांझपन दूर करना :: -

अतिबला के साथ नागकेसर को पीसकर ऋतुस्नान (मासिक-धर्म) के बाद, दूध के साथ सेवन करने से लम्बी आयु वाला (दीर्घजीवी) पुत्र उत्पन्न होता है।

7 मसूढ़ों की सूजन :: -

अतिबला (कंघी) के पत्तों का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन 3 से 4 बार कुल्ला करें। रोजाना प्रयोग करने से मसूढ़ों की सूजन व मसूढ़ों का ढीलापन खत्म होता है।

8 नपुंसकता (नामर्दी) :: -

अतिबला के बीज 4 से 8 ग्राम सुबह-शाम मिश्री मिले गर्म दूध के साथ खाने से नामर्दी में पूरा लाभ होता है।

9 दस्त :: -

अतिबला (कंघी) के पत्तों को देशी घी में मिलाकर दिन में 2 बार पीने से पित्त के उत्पन्न दस्त में लाभ होता है।

10 पेशाब के साथ खून आना :: -

अतिबला की जड़ का काढ़ा 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम पीने से पेशाब में खून का आना बंद हो जाता है।

11 बवासीर :: -

अतिबला (कंघी) के पत्तों को पानी में उबालकर उसे अच्छी तरह से मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में उचित मात्रा में ताड़ का गुड़ मिलाकर पीयें। इससे बवासीर में लाभ होता है।

12 रक्तप्रदर :: -

*खिरैंटी और कुशा की जड़ के चूर्ण को चावलों के साथ पीने से रक्तप्रदर में फायदा होता है।


*खिरेंटी के जड़ का मिश्रण (कल्क) बनाकर उसे दूध में डालकर गर्म करके पीने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।

*रक्तप्रदर में अतिबला (कंघी) की जड़ का चूर्ण 6 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम चीनी और शहद के साथ देने से लाभ मिलता है।

*अतिबला की जड़ का चूर्ण 1-3 ग्राम, 100-250 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर में लाभ मिलता है।"

13 श्वेतप्रदर : : -


*अतिबला की जड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर शहद के साथ 3 ग्राम की मात्रा में दूध में मिलाकर सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ प्राप्त होता है।

*खिरैटी की जड़ की राख दूध के साथ देने से प्रदर में आराम मिलता है।"

14 दर्द व सूजन में :: - दर्द भरे स्थानों पर अतिबला से सेंकना फायदेमंद होता है।

15 पित्त ज्वर :: - खिरेटी की जड़ का शर्बत बनाकर पीने से बुखार की गर्मी और घबराहट दूर हो जाती है।

16 रुका हुआ मासिक-धर्म :: - खिरैटी, चीनी, मुलहठी, बड़ के अंकुर, नागकेसर, पीले फूल की कटेरी की जड़ की छाल इनको दूध में पीसकर घी और शहद मिलाकर कम से कम 15 दिनों तक

लगातार पिलाना चाहिए। इससे मासिकस्राव (रजोदर्शन) आने लगता है।

17 पेट में दर्द होने पर :: - खिरैंटी, पृश्नपर्णी, कटेरी, लाख और सोंठ को मिलाकर दूध के साथ पीने से `पित्तोदर´ यानी पित्त के कारण होने वाले पेट के दर्द में लाभ होगा।

18 मूत्ररोग :: -

*अतिबला के पत्तों या जड़ का काढ़ा लेने से मूत्रकृच्छ (सुजाक) रोग दूर होता है। सुबह-शाम 40 मिलीलीटर लें। इसके बीज अगर 4 से 8 ग्राम रोज लें तो लाभ होता है।

*खिरैटी के पत्ते घोटकर छान लें, इसमें मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आता है।

*खिरैटी के बीजों के चूर्ण में मिश्री मिलाकर दूध के साथ लेने से मूत्रकृच्छ मिट जाती है।"

19 फोड़ा (सिर का फोड़ा) : : - अतिबला या कंघी के फूलों और पत्तों का लेप फोड़ों पर करने से लाभ मिलता है।

20 शरीर को शक्तिशाली बनाना : : -

*शरीर में कम ताकत होने पर खिरैंटी के बीजों को पकाकर खाने से शरीर में ताकत बढ़ जाती है।

*खिरैंटी की जड़ की छाल को पीसकर दूध में उबालें। इसमें घी मिलाकर पीने से शरीर में शक्ति का विकास होता है।" 

चमत्कारी सौंफ

चमत्कारी सौंफ 


सौंफ प्रतिदिन घर में प्रयुक्त किए जाने वाले मसालों में से एक है। इसका नियमित उपयोग सेहत के लिए लाभदायक है।

* सौंफ और मिश्री समान भाग लेकर पीस लें। इसकी एक चम्मच मात्रा सुबह-शाम पानी के साथ दो माह तक लें। इससे आँखों की कमजोरी दूर होती है तथा नेत्र ज्योति में वृद्धि होती है।


* सौंफ का अर्क दस ग्राम शहद मिलाकर लें। खाँसी में तत्काल आराम मिलेगा।

* बेल का गूदा 10 ग्राम और 5 ग्राम सौंफ सुबह-शाम चबाकर खाने से अजीर्ण मिटता है और अतिसार में लाभ होता है।

* यदि आपको पेटदर्द होता है, तो भुनी हुई सौंफ चबाइए, तुरंत आराम मिलेगा। सौंफ की ठंडाई बनाकर पीजिए, इससे गर्मी शांत होगी और जी मिचलाना बंद हो जाएगा।

* हाथ-पाँव में जलन की शिकायत होने पर सौंफ के साथ बराबर मात्रा में धनिया कूट-छानकर मिश्री मिलाकर खाना खाने के पश्चात 5-6 ग्राम मात्रा में लेने से कुछ ही दिनों में आराम हो जाता है।

* सौंफ रक्त को साफ करने वाली एवं चर्मरोग नाशक है। 

गुणकारी तीखी मिर्च

गुणकारी तीखी मिर्च


1 छोटी-छोटी फुन्सियां उठने पर हरी मिर्च का लेप लगाने से फुन्सियां बैठ जाती है।

2 खाज-खुजली के लिए मिर्च को तेल में जलाकर मालिश करने से आराम मिलता है।

3 जोड़ों का दर्द होने पर भी यह तेल फायदेमंद होता है।

4 कुत्ते के काट लेने पर या ततैया के के डंक मारने पर मिर्च को पीस कर लगाने से विषैले असर से छुटकारा मिलता है।

5 मकड़ी त्वचा पर चल जाती है, तब छोटे-छोटे दाने उभर आते हैं। उन पर भी मिर्च पीसकर लगाने से फायदा होता है।

6 हरी मिर्च अधिक मात्रा में नहीं ली जानी चाहिए, अन्यथा अम्ल-पित्त की शिकायत हो सकती है।

7 और शायद आपको पढ़कर आश्चर्य हो कि कई बुजुर्ग तीनों प्रकार की मिर्च काली, लाल और हरी को मिलाकर बनाए घोल से लंबे समय से चले आ रहे छालों का इलाज करते हैं। लेकिन बिना

विशेषज्ञ की सलाह के आप ऐसा ना करें क्योंकि इसके लिए तीनों मिर्च की सुनिश्चित मात्रा लेकर कटोरी में घोल बनाया जाता है और जी कड़ा करके उसे एक साथ पी लिया जाता है। यह हर किसी

पर कारगर हो आवश्यक नहीं। 

सर्दी खांसी जुकाम का ईलाज

सर्दी खांसी जुकाम का ईलाज 


• एक अच्छी दवाई खांसी जुखाम एलर्जी सर्दी आदि के लिए जिसे आप घर पर बना सकते है इसके लिए आपको चाहिए तुलसी के पत्ते, तना और बीज तीनो का कुल वजन 50 ग्राम इसके लिए

आप तुलसी के ऊपर से तोड ले इसमें बीज तना और तुलसी के पत्ते तीनो आ जाएंगे इनको एक बरतन में डाल कर 500 मिलि पानी डाल ले और इसमें 100 ग्राम अदरक और 20 ग्राम काली मिर्च

दोनो को पीस कर डाले और अच्छे से उबाल कर काढे और जब पानी 100 ग्राम रह जाए तो इसे छान कर किसी कांच की बोतल में डाल कर रखे इसमे थोडा सा शहद मिला कर आप इसके दो

चम्मच ले सकते है दिन में 3 बार


• जुखाम के लिए 2 चम्मच अजवायन को तवे पर हल्का भूने और फ़िर उसे एक रूमाल या कपडे में बांध ले और पोटली बना ले......उस पोटली को नाक से सूंघे और सो जाए

• खांसी के लिए रोज दिन में 3 बार हल्के गर्म पानी में आधा चम्मच सैंधा नमक डाल कर गरारे(gargles) करे सुबह उठ कर दोपहर को और फ़िर रात को सोने से पहले..............एक

चम्मच शहद में थोडी सी पीसी हुई काली मिर्च का पाऊडर डाल कर मिलाए और उसे चाटे...........अगर खासी ज्यादा आ रही हो तो 2 साबुत कालीमिर्च के दाने और थोडी सी मिश्री मुंह में रख कर

चूसे आराम मिलेगा

• अगर दही खाते है तो उसे बंद करदे और रात को सोते समय दूध न पिए

• तुलसी, काली मिर्च और अदरक की चाय खांसी में सबसे बढि़या रहती हैं।

• हींग, त्रिफला, मुलहठी और मिश्री को नीबू के रस में मिलाकर लेने से खांसी कम करने में मदद मिलती है।

• पीपली, काली मिर्च, सौंठ और मुलहठी का चूर्ण बनाकर चौथाई चम्मच शहद के साथ लेना अच्छा रहता है।

आयर्वेद के अनुसार कैसे भोजन करना चाहिए HOW TO EAT ACCORDING TO AYURVEDA

आयर्वेद के अनुसार कैसे भोजन करना चाहिए  HOW TO EAT ACCORDING TO AYURVEDA

आयुर्वेद के मुताबिक किस-किस चीज को साथ नहीं खाना चाहिए और क्यों, जानते हैं ???
दूध के साथ दही लें या नहीं? दूध और दही दोनों की तासीर अलग होती है। दही एक खमीर वाली चीज है। दोनों को मिक्स करने से बिना खमीर वाला खाना (दूध) खराब हो जाता है। साथ ही,

एसिडिटी बढ़ती है और गैस, अपच व उलटी हो सकती है। इसी तरह दूध के साथ अगर संतरे का जूस लेंगे तो भी पेट में खमीर बनेगा। अगर दोनों को खाना ही है तो दोनों के बीच घंटे-डेढ़ घंटे का

फर्क होना चाहिए क्योंकि खाना पचने में कम-से-कम इतनी देर तो लगती ही है।दूध के साथ तला-भुना और नमकीन खाएं या नहीं? दूध में मिनरल और विटामिंस के अलावा लैक्टोस शुगर और प्रोटीन

होते हैं। दूध एक एनिमल प्रोटीन है और उसके साथ ज्यादा मिक्सिंग करेंगे तो रिएक्शन हो सकते हैं। फिर नमक मिलने से मिल्क प्रोटींस जम जाते हैं और पोषण कम हो जाता है। अगर लंबे समय

तक ऐसा किया जाए तो स्किन की बीमारियां हो सकती हैं। आयुर्वेद के मुताबिक उलटे गुणों और मिजाज के खाने लंबे वक्त तक ज्यादा मात्रा में साथ खाए जाएं तो नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन

मॉडर्न मेडिकल साइंस ऐसा नहीं मानती।


सोने से पहले दूध पीना चाहिए या नहीं? आयुर्वेद के मुताबिक नींद शरीर के कफ दोष से प्रभावित होती है। दूध अपने भारीपन, मिठास और ठंडे मिजाज के कारण कफ प्रवृत्ति को बढ़ाकर नींद लाने में

सहायक होता है। मॉडर्न साइंस में भी माना जाता है कि दूध नींद लाने में मददगार होता है। इससे सेरोटोनिन हॉर्मोन भी निकलता है, जो दिमाग को शांत करने में मदद करता है। वैसे, दूध अपने

आप में पूरा आहार है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम होते हैं। इसे अकेले पीना ही बेहतर है। साथ में बिस्किट, रस्क, बादाम या ब्रेड ले सकते हैं, लेकिन भारी खाना खाने से दूध के गुण

शरीर में समा नहीं पाते।

दूध में पत्ती या अदरक आदि मिलाने से सिर्फ स्वाद बढ़ता है, उसका मिजाज नहीं बदलता। वैसे, टोंड दूध को उबालकर पीना, खीर बनाकर या दलिया में मिलाकर लेना और भी फायदेमंद है। बहुत

ठंडे या गर्म दूध की बजाय गुनगुना या कमरे के तापमान के बराबर दूध पीना बेहतर है।

नोट : अक्सर लोग मानते हैं कि सर्जरी या टांके आदि के बाद दूध नहीं लेना चाहिए क्योंकि इससे पस पड़ सकती है, यह गलतफहमी है। दूध में मौजूद प्रोटीन शरीर की टूट-फूट को जल्दी भरने में

मदद करते हैं। दूध दिन भर में कभी भी ले सकते हैं। सोने से कम-से-कम एक घंटे पहले लें। दूध और डिनर में भी एक घंटे का अंतर रखें।

खाने के साथ छाछ लें या नहीं? छाछ बेहतरीन ड्रिंक या अडिशनल डाइट है। खाने के साथ इसे लेने से खाने का पाचन भी अच्छा होता है और शरीर को पोषण भी ज्यादा मिलता है। यह खुद भी

आसानी से पच जाती है। इसमें अगर एक चुटकी काली मिर्च, जीरा और सेंधा नमक मिला लिया जाए तो और अच्छा है। इसमें अच्छे बैक्टीरिया भी होते हैं, जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। मीठी

लस्सी पीने से फालतू कैलरी मिलती हैं, इसलिए उससे बचना चाहिए। छाछ खाने के साथ लेना या बाद में लेना बेहतर है। पहले लेने से जूस डाइल्यूट हो जाएंगे।

दही और फल एक साथ लें या नहीं? फलों में अलग एंजाइम होते हैं और दही में अलग। इस कारण वे पच नहीं पाते, इसलिए दोनों को साथ लेने की सलाह नहीं दी जाती। फ्रूट रायता कभी-कभार ले

सकते हैं, लेकिन बार-बार इसे खाने से बचना चाहिए।

आयुर्वेद के मुताबिक परांठे या पूरी आदि तली-भुनी चीजों के साथ दही नहीं खाना चाहिए क्योंकि दही फैट के पाचन में रुकावट पैदा करता है। इससे फैट्स से मिलनेवाली एनर्जी शरीर को नहीं मिल

पाती।

दूध के साथ फल खाने चाहिए या नहीं? दूध के साथ फल लेते हैं तो दूध के अंदर का कैल्शियम फलों के कई एंजाइम्स को एड्जॉर्ब (खुद में समेट लेता है और उनका पोषण शरीर को नहीं मिल पाता)

कर लेता है। संतरा और अनन्नास जैसे खट्टे फल तो दूध के साथ बिल्कुल नहीं लेने चाहिए। व्रत वगैरह में बहुत से लोग केला और दूध साथ लेते हैं, जोकि सही नहीं है। केला कफ बढ़ाता है और दूध

भी कफ बढ़ाता है। दोनों को साथ खाने से कफ बढ़ता है और पाचन पर भी असर पड़ता है। इसी तरह चाय, कॉफी या कोल्ड ड्रिंक के रूप में खाने के साथ अगर बहुत सारा कैफीन लिया जाए तो भी

शरीर को पूरे पोषक तत्व नहीं मिल पाते।

मछली के साथ दूध पिएं या नहीं? दही की तासीर ठंडी है। उसे किसी भी गर्म चीज के साथ नहीं लेना चाहिए। मछली की तासीर काफी गर्म होती है, इसलिए उसे दही के साथ नहीं खाना चाहिए।

इससे गैस, एलर्जी और स्किन की बीमारी हो सकती है। दही के अलावा शहद को भी गर्म चीजों के साथ नहीं खाना चाहिए।

फल खाने के फौरन बाद पानी पी सकते हैं, खासकर तरबूज खाने के बाद? फल खाने के फौरन बाद पानी पी सकते हैं, हालांकि दूसरे तरल पदार्थों से बचना चाहिए। असल में फलों में काफी फाइबर

होता है और कैलरी काफी कम होती है। अगर ज्यादा फाइबर के साथ अच्छा मॉइश्चर यानी पानी भी मिल जाए तो शरीर में सफाई अच्छी तरह हो जाती है। लेकिन तरबूज या खरबूज के मामले में

यह थ्योरी सही नहीं बैठती क्योंकि ये काफी फाइबर वाले फल हैं। तरबूज को अकेले और खाली पेट खाना ही बेहतर है। इसमें पानी काफी ज्यादा होता है, जो पाचन रसों को डाइल्यूट कर देता है। अगर

कोई और चीज इसके साथ या फौरन बाद/पहले खाई जाए तो उसे पचाना मुश्किल होता है। इसी तरह, तरबूज के साथ पानी पीने से लूज-मोशन हो सकते हैं। वैसे तरबूज अपने आप में काफी अच्छा

फल है। यह वजन घटाने के इच्छुक लोगों के अलावा शुगर और दिल के मरीजों के लिए भी अच्छा है।

खाने के साथ फल नहीं खाने चाहिए। कार्बोहाइड्रेट और प्रोटींस के पाचन का मिकैनिज्म अलग होता है। कार्बोहाइड्रेट को पचानेवाला स्लाइवा एंजाइम एल्कलाइन मीडियम में काम करता है, जबकि नीबू,

संतरा, अनन्नास आदि खट्टे फल एसिडिक होते हैं। दोनों को साथ खाया जाए तो कार्बोहाइड्रेट या स्टार्च की पाचन प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इससे कब्ज, डायरिया या अपच हो सकती है। वैसे भी फलों

के पाचन में सिर्फ दो घंटे लगते हैं, जबकि खाने को पचने में चार-पांच घंटे लगते हैं। मॉडर्न मेडिकल साइंस की राय कुछ और है। उसके मुताबिक, फ्रूट बाहर एसिडिक होते हैं लेकिन पेट में जाते ही

एल्कलाइन हो जाते हैं। वैसे भी शरीर में जाकर सभी चीजें कार्बोहाइड्रेट, फैट, प्रोटीन आदि में बदल जाती हैं, इसलिए मॉडर्न मेडिकल साइंस तरह-तरह के फलों को मिलाकर खाने की सलाह देता है।

मीठे फल और खट्टे फल एक साथ न खाएं आयुर्वेद के मुताबिक, संतरा और केला एक साथ नहीं खाना चाहिए क्योंकि खट्टे फल मीठे फलों से निकलनेवाली शुगर में रुकावट पैदा करते हैं, जिससे

पाचन में दिक्कत हो सकती है। साथ ही, फलों की पौष्टिकता भी कम हो सकती है। मॉडर्न मेडिकल साइंस इससे इत्तफाक नहीं रखती।

खाने के साथ पानी पिएं या नहीं? पानी बेहतरीन पेय है, लेकिन खाने के साथ पानी पीने से बचना चाहिए। खाना लंबे समय तक पेट में रहेगा तो शरीर को पोषण ज्यादा मिलेगा। अगर पानी ज्यादा

लेंगे तो खाना फौरन नीचे चला जाएगा। अगर पीना ही है तो थोड़ा पिएं और गुनगुना या नॉर्मल पानी पिएं। बहुत ठंडा पानी पीने से बचना चाहिए। पानी में अजवाइन या जीरा डालकर उबाल लें। यह

खाना पचाने में मदद करता है। खाने से आधा घंटा पहले या एक घंटा बाद गिलास भर पानी पीना अच्छा है।

लहसुन या प्याज खाने चाहिए या नहीं? लहसुन और प्याज को रोजाना के खाने में शामिल किया जाना चाहिए। लहसुन फैट कम करता है और बैड कॉलेस्ट्रॉल (एलडीएल) घटाकर गुड कॉलेस्ट्रॉल

(एचडीएल) बढ़ाता है। इसमें एंटी-बॉडीज और एंटी-ऑक्सिडेंट गुण होते हैं। प्याज से भूख बढ़ती है और यह खून की नलियों के आसपास फैट जमा होने से रोकता है। लंबे समय तक इसके इस्तेमाल से

सर्दी-जुकाम और सांस संबंधी एलर्जी का मुकाबला अच्छे से किया जा सकता है। लहसुन और प्याज कच्चा या भूनकर, दोनों तरह से खा सकते हैं। लेकिन लहसुन कच्चा खाना बेहतर है। कच्चे

लहसुन को निगलें नहीं, चबाकर खाएं क्योंकि कच्चा लहसुन कई बार पच नहीं पाता। साथ ही, उसमें कई ऐसे तेल होते हैं, जो चबाने पर ही निकलते हैं और उनका फायदा शरीर को मिलता है।

परांठे के साथ दही खाएं या नहीं? आयुर्वेद के मुताबिक परांठे या पूरी आदि तली-भुनी चीजों के साथ दही नहीं खाना चाहिए क्योंकि दही फैट के पाचन में रुकावट पैदा करता है। इससे फैट्स से

मिलनेवाली एनजीर् शरीर को नहीं मिल पाती। दही खाना ही है तो उसमें काली मिर्च, सेंधा नमक या आंवला पाउडर मिला लें। हालांकि रोटी के साथ दही खाने में कोई परहेज नहीं है। मॉडर्न साइंस

कहता है कि दही में गुड बैक्टीरिया होते हैं, जोकि खाना पचाने में मदद करते हैं इसलिए दही जरूर खाना चाहिए।

फैट और प्रोटीन एक साथ खाएं या नहीं? घी, मक्खन, तेल आदि फैट्स को पनीर, अंडा, मीट जैसे भारी प्रोटींस के साथ ज्यादा नहीं खाना चाहिए क्योंकि दो तरह के खाने अगर एक साथ खाए जाएं,

तो वे एक-दूसरे की पाचन प्रक्रिया में दखल देते हैं। इससे पेट में दर्द या पाचन में गड़बड़ी हो सकती है।

दूध, ब्रेड और बटर एक साथ लें या नहीं? दूध को अकेले लेना ही बेहतर है। तब शरीर को इसका फायदा ज्यादा होता है। आयुर्वेद के मुताबिक प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फैट की ज्यादा मात्रा एक साथ

नहीं लेनी चाहिए क्योंकि तीनों एक-दूसरे के पचने में रुकावट पैदा कर सकते हैं और पेट में भारीपन हो सकता है। मॉडर्न साइंस इसे सही नहीं मानता। उसके मुताबिक यह सबसे अच्छे नाश्तों में से है

क्योंकि यह अपनेआप में पूरा है।

तरह-तरह की डिश एक साथ खाएं या नहीं? एक बार के खाने में बहुत ज्यादा वैरायटी नहीं होनी चाहिए। एक ही थाली में सब्जी, नॉन-वेज, मीठा, चावल, अचार आदि सभी कुछ खा लेने से पेट में

खलबली मचती है। रोज के लिए फुल वैरायटी की थाली वाला कॉन्सेप्ट अच्छा नहीं है। कभी-कभार ऐसा चल जाता है।

खाने के बाद मीठा खाएं या नहीं? मीठा अगर खाने से पहले खाया जाए तो बेहतर है क्योंकि तब न सिर्फ यह आसानी से पचता है, बल्कि शरीर को फायदा भी ज्यादा होता है। खाने के बाद में मीठा

खाने से प्रोटीन और फैट का पाचन मंदा होता है। शरीर में शुगर सबसे पहले पचता है, प्रोटीन उसके बाद और फैट सबसे बाद में।

खाने के बाद चाय पिएं या नहीं? खाने के बाद चाय पीने से कई फायदा नहीं है। यह गलत धारणा है कि खाने के बाद चाय पीने से पाचन बढ़ता है। हालांकि ग्रीन टी, डाइजेस्टिव टी, कहवा या सौंफ,

दालचीनी, अदरक आदि की बिना दूध की चाय पी सकते हैं।

छोले-भठूरे या पिज्जा/बर्गर के साथ कोल्ड ड्रिंक्स लें या नहीं? कोल्ड ड्रिंक में मौजूद एसिड की मात्रा और ज्यादा शुगर फास्ट फूड (पिज्जा, बर्गर, फ्रेंच फ्राइस आदि) में मौजूद फैट के साथ अच्छा नहीं

माना जाता। तला-भुना खाना एसिडिक होता है और शुगर भी एसिडिक होती है। ऐसे में दोनों को एक साथ लेना सही नहीं है। साथ ही बहुत गर्म और ठंडा एक साथ नहीं खाना चाहिए। गर्मागर्म भठूरे

या बर्गर के साथ ठंडा कोल्ड ड्रिंक पीना शरीर के तापमान को खराब करता है। स्नैक्स में मौजूद फैटी एसिड्स शुगर का पाचन भी खराब करते हैं। फास्ट फूड या तली-भुनी चीजों के साथ कोल्ड ड्रिंक

के बजाय जूस, नीबू-पानी या छाछ ले सकते हैं। जूस मे&##2306; मौजूद विटामिन-सी खाने को पचाने में मदद करता है।

भारी काबोर्हाइड्रेट्स के साथ भारी प्रोटीन खाएं या नहीं? मीट, अंडे, पनीर, नट्स जैसे प्रोटीन ब्रेड, दाल, आलू जैसे भारी कार्बोहाइड्रेट्स के साथ न खाएं। दरअसल, हाई प्रोटीन को पचाने के लिए जो

एंजाइम चाहिए, अगर वे एक्टिवेट होते हैं तो वे हाई कार्बो को पचाने वाले एंजाइम को रोक देते हैं। ऐसे में दोनों का पाचन एक साथ नहीं हो पाता। अगर लगातार इन्हें साथ खाएं तो कब्ज की शिकायत

हो सकती है।

विशेष : हम फास्ट फ़ूड और मांसाहार के विरोधी है क्योकि यह हमारे धर्म और संस्कृति के विरुद्ध है| 

लौंग के औषधीय गुण

!!! लौंग के औषधीय गुण !!! 

लौंग को वैसे तो मसाले के रूप में सदियों से उपयोग में लाया जा रहा है। लेकिन किचन में उपस्थित इस मसाले के अमूल्य औषधीय गुणों के बारे में कम ही लोग जानते हैं। आज हम बताने जा रहे

हैं लौंग के कुछ ऐसे ही औषधीय प्रयोगों के बारे में.....

लौंग में   कार्बोहाइड्रेट, नमी, प्रोटीन, वाष्पशील तेल, वसा जैसे तत्वों से भरपूर होता है। इसके अलावा लौंग में खनिज पदार्थ, हाइड्रोक्लोरिक एसिड में न घुलने वाली राख, कैल्शियम, फास्फोरस,

लोहा, सोडियम, पोटेशियम, विटामिन सी और ए भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं तीखी लोंग के ऐसे ही कुछ प्रयोग जो आपके लिए लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं।

- खाना खाने के बाद 1-1 लौंग सुबह-शाम खाने से एसीडिटी ठीक हो जाती है।
-15 ग्राम हरे आंवलों का रस, पांच पिसी हुई लौंग, एक चम्मच शहद और एक चम्मच चीनी मिलाकर रोगी को पिलाएं इससे एसीडिटी ठीक हो जाता है।

- लौंग को गरम कर जल में घिसकर माथे पर लगाने से सिर दर्द गायब हो जाता है।

- लौंग को पीसकर एक चम्मच शक्कर में थोड़ा-सा पानी मिलाकर उबाल लें व ठंडा कर लें। इसे पीने से उल्टी होना व जी मिचलाना बंद हो जाता है।

- लौंग सेंककर मुंह में रखने से गले की सूजन व सूखे कफ का नाश होता है।

- सिर दर्द, दांत दर्द व गठिया में लौंग के तेल का लेप करने से शीघ्र लाभ मिलता है।

- गर्भवती स्त्री को अगर ज्यादा उल्टियां हो रही हों तो लौंग का चूर्ण शहद के साथ चटाने से लाभ होता है।

- लौंग का तेल मिश्री पर डालकर सेवन करने से पेटदर्द में लाभ होता है।

- एक लौंग पीस कर गर्म पानी से फांक लें। इस तरह तीन बार लेने से सामान्य बुखार दूर हो जाएगा।

- लौंग दमा रोगियों के लिए विशेषरूप से लाभदायक है। लौंग नेत्रों के लिए हितकारी, क्षय रोग का नाश करने वाली है।

- लौंग और हल्दी पीस कर लगाने से नासूर मिटता है।

- चार लौंग पीस कर पानी में घोल कर पिलाने से बुखार ठीक हो जाती है।